World Cancer Day: इंदौर,नईदुनिया प्रतिनिधि। यह कहानी है उन लोगों की जिन्होंने कैंसर जैसी घातक बीमारी से न सिर्फ दो-दो हाथ किए, बल्कि उसे पराजित भी किया और वर्षों से स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। इनमें से किसी ने कैंसर से लड़ाई में संगीत को हथियार बनाया तो किसी ने कैंसर का सामना एक सैनिक बनकर किया। वर्षों पहले कैंसर को हरा चुके ये लोग अब कैंसर पीड़ित मरीजों को इस बीमारी से लड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। डाक्टर भी मानते हैं कि कैंसर के उपचार में पीड़ित व्यक्ति का मानसिक रूप से मजबूत होना बहुत जरूरी है।

2004 में करवाई थी सर्जरी, अब पूरी तरह स्वस्थ हैं

वर्ष 2004 में जब पता चला था कि मुझे आहार नली का कैंसर है तो लगा कि जैसे जीवन खत्म हो गया है। डाक्टरों ने जांच कर बताया कि यह चौथी स्टेज का कैंसर है। पैरों तले जमीन खिसक गई थी, लेकिन फिर मैंने भीतर के सैनिक को जगाया और सोचा कि जब मैं सीमा पर जंग लड़ सकता हूं तो अपने आप से क्यों नहीं। मैंने हिम्मत दिखाई और आपरेशन करवाया। कैंसर को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया। आज मैं स्वस्थ हूं और कैंसर पीड़ितों को इस बीमारी से लड़ने के लिए प्रेरित करता हूं।

- ओमप्रकाश विश्वकर्मा, सेवानिवृत्त सैनिक

खुद कैंसर से लड़ीं अब लोगों को प्रेरित कर रही हैं

वर्ष 2007 में पता चला कि मुझे गर्भाशय का कैंसर हुआ है। कई दिनों तक तो समझ ही नहीं आया कि क्या करूं। परिवार में संगीत का माहौल था। मैंने कैंसर से लड़ाई में इसी संगीत को अपना हथियार बनाया और डाक्टरी उपचार के साथ स्वरों के माध्यम से सकारात्मक भाव लाना शुरू किया। दो वर्ष की लड़ाई के बाद वर्ष 2009 में मैंने कैंसर पर जीत हासिल कर ली। वर्ष 2010 में कैंसर पीडितों के लिए काम शुरू किया और इंद्रधनुष संगीत उपचार प्रसार संस्था बनाई। हम महिलाओं को समझाइश देते हैं। उन्हें बताते हैं कि कैसे प्राथमिक स्टेज में ही कैंसर का पता लगाकर इसकी गंभीरता से बचा जा सकता है। कैंसर पर जीत हासिल कर चुके 250 से ज्यादा लोग संस्था के सदस्य हैं।

-डा. छाया मटंगे, कैंसर विजेता

दो बार कैंसर ने हमला किया लेकिन दोनों बार हराया

कैंसर ने पहली बार वर्ष 1993 में मुझे अपना शिकार बनाया था। गायक था लेकिन कैंसर की वजह से गला चला गया। मैंने कैंसर से दो-दो हाथ किए और इसे हरा दिया। इसके बाद करीब 17 वर्ष बाद 2012 में एक बार फिर कैंसर ने मुझ पर हमला किया। इस बार भी मैंने हिम्मत दिखाई और इसे मात दी। 10 वर्षों से मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं और अब लोगों को इस बीमारी से लड़ने के लिए प्रेरित करता हूं। कैंसर से लड़ाई लड़ते हुए मैंने तीन पुस्तकें भी लिखीं। पहली पुस्तक प्रहार का विमोचन बाबा आमटे ने, दूसरी अलविदा कैंसर का विमोचन अब्दुल कलाम साहब ने और तीसरी पुस्तक एक और प्रहार का विमोचन आशा भोंसले ने किया।

- विवेक हिरदे, कैंसर विजेता

Posted By: Sameer Deshpande

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