IIT Indore: गजेन्द्र विश्वकर्मा, इंदौर। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) इंदौर आधुनिक तकनीक के क्षेत्र में कदम बढ़ाते हुए अब माइक्रोचिप डिजाइन का केंद्र बनने की ओर अग्रसर हो गया है। संस्थान में वेरीलार्ज स्केल इंटीग्रेशन (वीएलएसआइ) से संबंधित काम होगा, जिसके तहत विभिन्न तरह की सेमीकंडक्टर की डिजाइन तैयार कर इसे मैन्युफैक्चरिंग किया जा सकेगा। इसके लिए संस्थान को वीएलएसआइ सोसाइटी आफ इंडिया का साथ मिल गया है।

सोसाइटी मध्य प्रदेश का अपना पहला केंद्र आइआइटी परिसर में 19 मार्च से शुरू करने जा रहा है। इससे आइआइटी चार वर्ष से जिस सेमीकंडक्टर तकनीक पर कार्य करने के लिए उत्साहित था उसे गति मिल सकेगी। संस्थान में 19 मार्च को केंद्र की स्थापना के समय एमपी स्टेट इलेक्ट्रानिक्स डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड के एएमडी आइएएस अंशुल गुप्ता, वीएलएसआइ सोसाइटी आफ इंडिया के प्रेसीडेंट डा. सत्या गुप्ता, वीई कमर्शियल व्हीकल पीथमपुर के प्रोडक्ट डिजाइन एवं डेवलपमेंट के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट सचिन अग्रवाल, सीमेंस कंपनी के कंटी मैनेजर रुचिर दीक्षित, भारत सरकार के इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन के निदेशक निशित गुप्ता, आइआइटी इंदौर के निदेशक प्रो. सुहास जोशी सहित कई सदस्य मौजूद रहेंगे।

बाहर की कंपनियां होंगी प्रदेश में आकर्षित

आइआइटी इंदौर के प्रो. संतोष कुमार सिंह का कहना है कि भारत सरकार सेमीकंडक्टर क्षेत्र को बढ़ावा दे रही हैं। इसके लिए करोड़ों रुपये का फंड तैयार किया गया है। इसका लाभ हम प्रदेश को भी दिलाना चाहते हैं। इंदौर के आसपास इसका हब तैयार करने के लिए सरकार से भी चर्चा जारी है। चूंकि आइआइटी इंदौर के पास इस क्षेत्र के अनुभवी जानकार मौजूद हैं। ऐसे में हम अपने स्तर पर इस पर कई शोध कार्य कर चुके हैं। अब वीएलएसआइ सोसाइटी का मध्य प्रदेश चैप्टर परिसर में शुरू होने से देश-दुनिया के सभी साधन आसानी से मौजूद हो सकेंगे। इसका लाभ आगामी वर्षों में प्रदेश को भी मिलेगा। चैप्टर आने से बेंगलुरु और अन्य क्षेत्रों में मौजूद सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनियां भी प्रदेश की ओर आकर्षित होगी।

विदेशों से नहीं मंगवाने पड़ेंगे सेमीकंडक्टर

सेमीकंडक्टर का उपयोग वाहनों, इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रानिक्स उपकरणों और कई मशीनों में होता है। कोरोना महामारी के समय भारत में इसकी कमी से आटोमोबाइल सहित कई क्षेत्र प्रभावित हुए थे। इसके बाद केंद्र सरकार ने क्षेत्र को विकसित करने के लिए 76 हजार करोड़ रुपये का फंड बनाया। सेमीकंडक्टर की पूर्ति के लिए भारत को ताईवान, चीन, साउथ कोरिया, जापान और अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता है। आइआइटी इंदौर प्रदेश के कई तकनीकी कालेजों को भी वीएलएसआइ तकनीक की समझ बढ़ाने में मदद करेगा।

क्या है वीएलएसआइ

बहुत बड़े पैमाने पर एकीकरण (वीएलएसआइ) एक एकल चिप में ट्रांजिस्टर के हजारों के संयोजन के द्वारा एक एकीकृत सर्किट (आइसी) बनाने की प्रक्रिया है। वीएलएसआई 1970 के दशक में शुरू हुआ था, जब जटिल अर्द्धचालक और संचार प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा रहा था। माइक्रोप्रोसेसर एक वीएलएसआइ डिवाइस है।

सोसाइटी के प्रदेश में आने से मिलेगा लाभ

वीएलएसआइ सोसाइटी आफ इंडिया का गठन 1989 में वीएलएसआइ क्षेत्र में भारत को एक मजबूत ताकत बनाने के लक्ष्य के साथ किया गया था। उस समय भारत में वीएलएसआइ क्षेत्र में गतिविधियां सीमित थीं और इस क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों की संख्या भी कम थी। अब भारत में चिप डिजाइन, एम्बेडेड सिस्टम डिजाइन, इलेक्ट्रानिक डिजाइन आटोमेशन और डिजाइन सेवाओं के क्षेत्र में सौ से अधिक कंपनियां काम कर रही हैं। सोसाइटी का प्रदेश चैप्टर आइआइटी में शुरू हो जाने से इस क्षेत्र में नए कोर्स शुरू हो सकेंगे। प्रशिक्षण मिल सकेगा और यहां से तैयार होने वाले सेमीकंडक्टर भारत और विदेशों में भेजे जा सकेंगे। पीथमपुर और देवास में बड़े उद्योगों को भी इसके आने से लाभ मिलेगा।

Posted By: Sameer Deshpande

Mp
Mp
  • Font Size
  • Close