इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि), Indore Literature Festival। साहित्य के दो दिनी जलसे में मंच बेहतर लेखन की प्यास बुझाने का ठिकाना बना। प्यास को बुझाने के लिए बहती नदी सी रवानी लिए अभिनेता, गीतकार, गायक पीयूष मिश्रा भी उस मंच पर आए और उन्हीं के बगल में शांत तालाब का अहसास कराते बातों के जादूगर नीलेश मिसरा भी बैठे थे। दोनों का मकसद युवा लेखकों को बेहतर लेखन के गुर समझाना था। हम बात कर रहे हैं इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल की, जो शनिवार को सुनने-सुनाने के खूबसूरत सिलसिले के साथ मंजिल पर पहुंचा। हेलो हिंदुस्तान द्वारा होटल सयाजी में आयोजित इस साहित्यिक समागम में पीयूष मिश्रा ने कहा कि मैं सिर्फ अनुभव के कारण लिख लेता हूं। जैसी नजर आती है मेरी जिंदगी वैसी कभी नहीं रही इसलिए मेरे लेखन में कसैलापन भी है। लोग पूछते हैं कि हम लिखें कैसे तो मैं यही कहता हूं कि लेखन 'विजुअल राइटिंग' वाला होना चाहिए।
मतलब आप जो लिखें, उसमें दृश्यात्मकता हो। कई बार लोग नकारे जाने से घबरा जाते हैं। पर मेरा मानना है कि यदि 'रिजेक्शन' नहीं होगा तो सफलता कैसे मिलेगी। सफल गीत देने के बाद भी मुझे 'रिजेक्शन' मिला, इसलिए इसे स्वीकारें। यदि रिजेक्शन नहीं मिले तो समझो जिंदगी अधूरी है।
दिखावे के लिए लेखन न करें : नीलेश मिसरा ने कहा कि मेरा जीवन खूबसूरत इत्तेफाकों का सिलसिला रहा। मैंने एक कम्युनिकेटर के रूप में जीवन जिया है। मेरे लेखन में ऑब्जर्वेशन के जरिए संग्रहित की गई बातें काम आती हैं। मेरा मानना है कि लेखन में यदि कल्पनाशीलता शामिल है तो वह भी अनुभव और यथार्थ के आधार पर ही मिल पाती है। मैं तो परेशानियों से संवेदनाएं लेकर आया हूं। मेरा शब्दकोष बहुत कम है। मैं तो सरल भाषा में बोलता और लिखता रहा हूं। मेरा मानना है कि दिखावे के लिए बिल्कुल न लिखें।
'धर्म का आशय मत या संप्रदाय से नहीं' : आयोजन में धर्म और कर्म पर भी विस्तार से संवाद हुआ। एक सत्र लेखक अमीष त्रिपाठी और भावना रॉय से चर्चा का था। वर्चुअली हुए इस सत्र में इंदौर से पूछे गए सवालों के अपने-अपने शहरों में बैठे इन लेखकों ने जवाब दिए। लेखकों ने पहले ही प्रश्न में प्रश्नकर्ता के इस असमंजस को दूर कर दिया कि उनकी रचनाएं धर्म पर आधारित जरूर हैं, लेकिन यहां धर्म कर्म की बात करता हूं, मत, पंथ या संप्रदाय की नहीं। उन्होंने कहा कि वास्तव में धर्म वह है, जो पूरे समाज को, ब्रह्मांड को एक साथ लाए। धर्म की परिभाषा सबके लिए अलग हो सकती है। वैसे तो अहिंसा परमोधर्म कहा जाता है, लेकिन यह आपके और हमारे लिए है, पर सीमा पर तैनात जवान जब दुश्मनों की घुसपैठ को रोकने के लिए हथियार उठाता है, उन्हें मारता है तो वहां हिंसा धर्म बन जाती है। इसी तरह घुसपैठ कर रहे दुश्मन अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं जो उनका धर्म है।
'हम तो मोक्ष की बात करते हैं' : अक्सर किसी के निधन के बाद श्रद्धांजलि स्वरूप लोग रेस्ट इन पीस (आरआइपी) लिखते हैं। इस शब्द का अर्थ उस धारणा को मानने वालों को लिए तो सही होगा, जो कहते हैं कि मृत व्यक्ति एक दिन दुबारा जीवित होगा और तब तक के लिए उन्हें आराम करनें दें। पर हमारे देश में दुबारा जीवित होने की नहीं, मोक्ष की मांग की जाती है।
पहले खुद को साबित करें : उद्योगपति विनोद अग्रवाल ने सफलता, संस्कारों और समाज की बात की। उन्होंने कहा कि कोई कार्य छोटा-बड़ा नहीं होता, बस वह कार्य ईमानदारी और नेकनीयत से किया जाए। आप जितना भी अच्छा काम करेंगे, उतने ही मौके आपको मिलेंगे। ब्रांड बनने का सपना देखने वाले इस बात को ध्यान रखें कि ब्रांड कभी एक रात में नहीं बनता। उसे खून-पसीने से सींचना होता है। यदि आप संस्थान के मालिक हैं तो पहले संस्थान के कर्मचारियों के दिल में अपने कार्य के जरिए जगह बनाएं। यदि कर्मचारियों ने आपको नकार दिया तो आप कुछ नहीं कर पाएंगे। इसलिए सबसे पहले खुद को साबित करें।
कविता-कहानियों का चला सिलसिला : शनिवार को शहर का साहित्यकारों को मंच देने के लिए विभिन्ना सत्र हुए। इनमें रचनाकारों ने कविताएं पेश कीं। कहानी लेखन स्पर्धा भी हुई। इसके विजेता कहानियों के लिखकों को नीलेश मिसरा ने पुरस्कृत किया। उन्होंने अपने दो गीत 'मैंने दिल से कहा ढूंढ़ लाना खुशी' और 'क्यों न हम-तुम चलें' सुनाए।
Posted By: Prashant Pandey
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