Indore News: इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। इंदौर के चिकित्सा जगत में अब कई रास्ते खुल गए हैं। एक तरफ जहां एक बड़ा वर्ग एलोपैथी के क्षेत्र में अपने लिए संभावनाएं तलाश रहा है, वहीं युवाओं का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में संभावनाएं खोज रहा है। एक तरफ जहां देश के नामी चिकित्सा संस्थान व अस्पताल शहर में अपने पैर जमा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा सहित अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की ओर युवाओं का रुझान तेजी से बढ़ा है। खासकर कोरोना कालखंड के बाद इन क्षेत्रों में करियर में तो बूम आया ही है, आमजन का रुझान भी इस ओर हुआ है।

इंदौर के युवा अब इस बात पर भी ध्यान दे रहे हैं कि करियर के साथ-साथ उन्हें संतुष्टि भी मिले। यही कारण है कि युवाओं की रुचि ऐसे क्षेत्र में करियर बनाने की हो रही है, जहां से बेहतर रोजगार प्राप्त किया जा सके, स्वयं की पहचान बनाई जा सके और अपने साथ-साथ दूसरों की सेहत का भी ध्यान रखा जा सके। इसके लिए युवा अब वैकल्पिक चिकित्सा का रुख कर रहे हैं। बीते चार वर्षों में ही इस क्षेत्र को अपनाने वालों की संख्या में दोगुना इजाफा हुआ है। युवा अब योग, प्राकृतिक चिकित्सा, एक्यूप्रेशर, सुजोक थैरेपी, रेकी आदि को बहुत महत्व दे रहे हैं।

प्रशिक्षण लेने वालों में 50 प्रतिशत युवा

एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ डा. एके जैन बताते हैं कि वर्तमान में वैकल्पिक चिकित्सा सीखने वालों में 50 प्रतिशत युवा हैं। वे इसे करियर के रूप में अपनाने के लिए सीख रहे हैं। इनमें 22 से 35 वर्ष की उम्र के युवा सर्वाधिक हैं। युवा सबसे ज्यादा योग, एक्यूप्रेशर व प्राकृतिक चिकित्सा सीख रहे हैं, क्योंकि आम नागरिक भी अब इन पद्धतियों को अपनाते हुए स्वस्थ रहने पर ध्यान दे रहे हैं। खास बात तो यह है कि आयुर्वेद विशेषज्ञ, पैरामेडिकल स्टाफ जैसे नर्स, फिजियोथैरेपिस्ट व होम्योपैथी चिकित्सक भी इसका प्रशिक्षण ले रहे हैं, ताकि वे और भी बेहतर ढंग से रोग दूर कर सकें। इन पद्धतियों का कम खर्चीला होना, बेहतर परिणाम देना व बिना साइड इफैक्ट के उपचार करना लोगों को खूब रास आ रहा है।

40 प्रतिशत बढ़ गए रेकी के प्रशिक्षु

रेकी विशेषज्ञ उषा बसंत सोनी बताती हैं कि विगत पांच वर्ष में शहर में रेकी सीखने वालों की संख्या करीब 40 प्रतिशत तक बढ़ गई है। लोग अब, खासकर कोरोना कालखंड के बाद यह समझ चुके हैं कि प्राकृतिक संसाधन, सकारात्मकता और स्वऊर्जा का उपयोग करते हुए न केवल स्वस्थ रहा जा सकता है बल्कि दूसरों को भी स्वास्थ्य लाभ पहुंचाया जा सकता है। अब लोग शरीर और मन, दोनों की ही चिकित्सा पर ध्यान दे रहे हैं।

लोग भी दे रहे महत्व

प्राकृतिक चिकित्सक डा. पलक खरगोनकर बताती हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा को करियर के रूप में इसलिए अपनाया जा रहा है, क्योंकि इसमें अब रोजगार के शानदार अवसर बन रहे हैं। कुछ प्रदेशों में प्राकृतिक चिकित्सा को स्थानीय सरकार द्वारा भी प्रोत्साहित किया जा है। इसके इतर लोग भी अब इसका महत्व समझने लगे हैं। वर्तमान में यदि इसका प्रशिक्षण किसी मान्य व अच्छे संस्थान से ले लिया जाए तो 25 हजार से 80 हजार रुपये प्रतिमाह तक भी कमाया जा सकता है।

दोगुना हुए योग साधक

योग विशेषज्ञ डा. आलोक द्विवेदी बताते हैं, जबसे आयुष मंत्रालय के योग सर्टिफिकेशन बोर्ड द्वारा कुछ परीक्षाएं आयोजित कर उन्हें उत्तीर्ण करने वालों को योग थैरेपिस्ट या योग थैरेपी कंसल्टेंट का प्रमाण पत्र देना आरंभ किया गया है, तबसे इस दिशा में क्रांति आ गई है। अब लोग केवल अपनी सेहत के लिए ही योग नहीं अपना रहे बल्कि दूसरों की चिकित्सा के लिए भी अपना रहे हैं। इसके लिए वे बाकायदा कोर्स कर रहे हैं। बीते पांच वर्षों में योग सीखने वालों की संख्या में दोगुना वृद्धि हुई है।

यह है खास

  • तीन माह के सर्टिफिकेट कोर्स से लेकर पीएचडी तक कर रहे युवा
  • 20 हजार रुपये से 80 हजार रुपये तक हो रही मासिक आय
  • 22 से 35 वर्ष के युवाओं की संख्या ज्यादा है वैकल्पिक चिकित्सा के कोर्स करने वालों में
  • 12वीं के बाद कोर्स के लिए आ रहे ज्यादातर आवेदन
  • पांच वर्षों में दोगुना हुई कोर्स करने वालों की संख्या
  • 50 प्रतिशत युवा हैं कोर्स करने वालों में

Posted By: Hemraj Yadav

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