Train in indore: नवीन यादव, इंदौर। होलकर कालीन खंडवा-इंदौर रेल लाइन के बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। इतिहासकारों के अनुसार इंदौर में स्थापित कपड़ा मिलों की मशीनों को हाथियों पर रख कर खंडवा से लाया गया था। उस समय रेल कनेक्टिविटी इंदौर से नहीं थी। होलकर राजा इससे नाराज थे, वहीं महू सैन्य छावनी को जोड़ने के लिए अंग्रेज भी इस लाइन का इंतजार कर रहे थे। इसी कारण इस रेल लाइन का जन्म हुआ था।
146 साल पुरानी इस ऐतिहासिक रेल लाइन के बारे में इतिहासकार बताते हैं कि होलकर राजा आर्थिक समृद्धि और औद्योगिक व्यापारिक विस्तार के लिए नगर को शेष भारत से रेल मार्ग द्वारा जोड़ना चाहते थे। सारे देश में रेलवे पर ब्रिटिश एकाधिकार था। अतः होलकर महाराजा ने तत्कालीन भारत सरकार से अनुरोध किया कि इंदौर नगर को खंडवा व राजपूताना से रेल द्वारा जोड़ा जाए। उनके अनुरोध पर प्रस्तावित रेलवे लाइन पर चर्चा करने के लिए 1863 में ए एस आर्टन को इंदौर भेजा। आर्टन ने रेलवे लाइन स्थापित करना तो संभव बताया किंतु खंडवा से इंदौर के मध्य पड़ने वाली सतपुड़ा व विंध्याचल की ऊंची पहाड़ियों और नर्मदा नदी को बड़ी बाधा निरूपित कर दिया।
महाराज पर ऋण के लिए डाला दबाव
जानकारों का कहना है कि महाराजा को ऋण हेतु तैयार करने के लिए यह एक मानसिक दबाव डालने की साजिश थी। वास्तव में ब्रिटिश सरकार इस रेलवे लाइन का निर्माण करने में रुचि रखती थी क्योंकि इसके निर्माण से ब्रिटिश छावनी महू भी रेल लाइन से जुड़नी थी, जहां से वे तेजी से मिलिट्री मूवमेंट कर सकते थे और नीमच छावनी भी इस लाइन से जुड़ जाती। इंदौर में रेल लाने के लिए महाराजा तुकोजीराव व ब्रिटिश सरकार के बीच छह वर्षों तक लंबी लिखा-पढ़ी चलती रही। अंग्रेजी सरकार ने आर्थिक समस्या व धनाभाव बताकर इस रेलवे लाइन को रद करने की इच्छा प्रकट की।
महाराजा तो किसी भी हालत में रेलवे लाइन का निर्माण करवाने पर आमादा थे। उन्होंने धनाभाव के बहाने को समाप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार को ऋण देना भी स्वीकार कर लिया। पहले यह ऋण कम अवधि के लिए दिया जाने का प्रस्ताव था किंतु अंग्रेजों ने यहां भी बाधा उत्पन्न करने के लिए ऋण की अवधि 101 वर्ष रख दी। अंततः महाराजा ने उनकी यह शर्त भी स्वीकार ली और 1869 में पूरे एक करोड़ का ऋण साढ़े चार प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर पर अंग्रेजों को 101 वर्षो की अवधि के लिए दे दिया गया।
मोरटक्का में बना था कार्यालय
इतिहासकारों ने बताया कि इस समझौते के तहत खंडवा से रेलवे लाइन बिछाने का काम युद्ध-स्तर पर प्रारंभ हुआ और 1872 तक इस लाइन को मोरटक्का तक निर्मित कर दिया गया। तीन मई 1872 को मोरटक्का में एक कार्यालय स्थापित किया गया, जहां से आगे का निर्माण कार्य नियंत्रित किया जाना था। नर्मदा पर मजबूत रेलवे पुल का निर्माण किया गया। आगे पर्वतीय क्षेत्र था। पहाड़ों की चट्टानों को काट-काट कर बोगदे बनाने थे, साधनों के अभाव में वन्य पशुओं की बहुलता वाले इस क्षेत्र में अत्यंत दुष्कर कार्य था। पर्वतों की छाती में छेदकर आखिर रेल मार्ग बना ही लिया गया। नौ वर्षों के निरंतर परिश्रम के बाद आखिर रेल लाइन 1878 में इंदौर नगर आ पहुंची। उसी वर्ष पहली रेलगाड़ी भी इस शहर में आई।
जानबूझकर इस लाइन को रखा घाटे में
होलकर राजा और अंग्रेजी सरकार के बीच एक समझौता था। इसके अनुसार इंदौर-खंडवा रूट से आधा लाभ होलकर राजा को मिलना था। किंतु 1918 तक भी कभी ऐसा लाभांश नहीं मिला। अंग्रेजों ने रेल लाइन को जानबूझकर घाटे में रखा। दिल्ली से बंबई (अब मुंबई) का ट्रैफिक तो रतलाम होकर जाता ही था, लेकिन महू तक के यात्रियों को रतलाम होकर बंबई भेजा जाता था ताकि लाभ अंग्रेजों को मिले।
इसके बाद दो नवंबर 1918 को प्रो. स्टेनले जेविंस ने इंदौर राज्य में संभावित रेलवे लाइनों के लिए एक विस्तृत योजना तैयार की थी। जिसमें इंदौर को देवास से ब्राडगेज लाइन द्वारा जोड़ा जाना था। स्टेनले जेविस द्वारा इंदौर राज्य के लिए 1918 में प्रस्तुत योजना में कन्नौद, नेमावर, धार, अमझेरा, बेटमा तथा देपालपुर आदि को इंदौर के साथ रेलमार्ग से जोड़ा जाना था।
Posted By: Sameer Deshpande
- Font Size
- Close