Indore News: इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। मनुष्य का जीवन हमें केवल पशुओं की तरह व्यवहार करने के लिए नहीं, बल्कि सदभाव, परमार्थ और सेवा करूणा जैसे प्रकल्पों के लिए भी मिला है। भगवान अनुभूति का विषय है। हृदय में पवित्र संकल्प आयेंगें तो विचारों का प्रवाह भी निर्मल हो जाएगा। भगवान की लीलाओं के दर्शन एवं श्रवण से मन के विकार दूर होते हैं और शरीर की इंन्द्रियों पर सात्विक प्रभाव होता है। आत्मा और परमात्मा का मिलन कृष्ण-रूक्मणी विवाह है। हमारे धर्मग्रंथ सुषुप्त समाज को जागृत एवं चैतन्य बनाते हैं।
यह बात नीलांचल धाम ओंकारेश्वर की भागवताचार्य सुश्री सर्वेश्वरीदेवी ने कही। वे एयरपोर्ट रोड स्थित सुखदेव नगर में सुखदेव वाटिका स्थित पंचवटी हनुमान मंदिर पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में रूक्मणी विवाह प्रसंग के दौरान सम्बोधित कर रही थी। कथा में कृष्ण-रुक्मणी विवाह का जीवंत उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। जैसे ही कृष्ण-रुक्मणी ने एक-दूजे को वरमाला पहनाई, समूचा पांडाल भगवान के जयघोष से गूंज उठा।
मन मे श्रेष्ठ भाव होना चाहिए
भागवताचार्य सर्वेश्वरीदेवी ने कहा कि भगवान को धन सम्पत्ति नहीं, मन के श्रेष्ठ भाव चाहिए। वे छप्पन भोग के नहीं, हमारे प्रेम की भावना के भूखे हैं। रूक्मणी मगंल प्रसंग हमारी भारतीय संस्कृति और मर्यादा का गौरवशाली उजला पक्ष है। रूक्मणी विवाह आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है। कृष्ण योगेश्वर, लीलाधर और नटवर की यही विशेषता है कि वे कृपा वर्षा करते भी हैं तो पता ही नहीं चलते देते। हमारे सभी देवी-देवता प्राणियों के उद्धार के लिए ही अवतरित होते हैं।
Posted By: Sameer Deshpande
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