जितेंद्र यादव, इंदौर। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सरकारी राशन के भंडारों पर माफिया ही नहीं, कई नेताओं का भी 'कंट्रोल' है। किसी समय खाद्य विभाग के जरिए गरीब और जरूरतमंदों को बंटने वाले राशन की उचित मूल्य की दुकानों को कंट्रोल की दुकान कहा जाता था। उस समय क्या कांग्रेस और क्या भाजपा, सभी दलों के नेताओं ने खर्चा-पानी चलाने के लिए कंट्रोल की दुकानें ली थीं। दिलचस्प बात है कि इनमें सांसद, विधायक, पार्षद जैसे नेताओं के भी राशन भंडार हैं। कोई पूर्व हो गए तो कोई पद पर हैं। इनका आवंटन भी खाद्य विभाग के अधिकारी और नेताओं के गठजोड़ से होता रहता था, जो अब भी जारी है। समय के साथ और बड़े पदों पर पहुंचने के बाद अधिकांश नेताओं ने अपने राशन भंडार समर्थकों को दे दिए हैं तो कुछ अब भी उनके पास ही हैं। यह बात अलग है कि अब इनमें उनका नाम नहीं है, लेकिन पर्दे के पीछे सूत्र उन्हीं के हाथ में हैं। इनमें एक, दो, तीन, चार, पांच नंबर सभी विधानसभा क्षेत्र के छोटे-बड़े नेता शामिल हैं।
महालक्ष्मी नगर क्षेत्र के एक बड़े रियल एस्टेट कारोबारी के पिता भी एक जमाने में कंट्रोल दुकान ही चलाते थे। उन्होंने एक साथ कई कंट्रोल दुकानें लेकर खुद चलाई और कुछ पर अपने रिश्तेदारों को बिठा दिया। राशन दुकानें दिलवाने में कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री ने उनकी काफी मदद की।
इंदौर जिले में 543 भंडार, लेकिन 12 पर ही थमी जांच
इंदौर जिले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत उचित मूल्य के 543 राशन भंडार हैं। इनमें से 316 भंडार नगर निगम क्षेत्र में हैं। कोरोना काल में गरीबों और जरूरतमंदों के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के नियमित राशन के अलावा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का काफी राशन आया था। इसमें बड़े पैमाने पर घपला हुआ। प्रशासन ने केवल 12 भंडारों की जांच की, उसी में 79 लाख रुपये का घोटाला सामने आया है। ऐसे में बाकी भंडारों की भी जांच की जाए तो बड़ा घोटाला सामने आ सकता है। पर फिलहाल प्रशासन का आगे जांच का इरादा नहीं है। इस मामले में अपर कलेक्टर अभय बेडेकर का कहना है कि अभी इतने राशन भंडारों की ही जांच की है। आगे कोई जांच नहीं कर रहे हैं। यदि सभी राशन दुकानों की जांच करेंगे तो उनका काम प्रभावित होगा और जरूरतमंदों को राशन मिलने में कठिनाई होगी। आधी-अधूरी जांच पर विपक्ष ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने कहा कि राशन दुकानों की जांच राजनीति से प्रेरित लग रही है। प्रशासन ने केवल दवे परिवार से जुड़े राशन भंडारों को ही निशाना बनाया है। भरत और श्याम दवे के खिलाफ तो रासुका की कार्रवाई की है, लेकिन आरोपित प्रमोद दहीगुड़े के खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की है। जिले और शहर के अन्य राशन दुकानों की भी जांच की जानी चाहिए।
Posted By: Prashant Pandey
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