Madhya Pradesh Ranji Champion: इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। कोई भी सफलता सामान्य प्रयासों से नहीं मिलती। मध्य प्रदेश क्रिकेट टीम को रणजी ट्राफी उठाए देखकर यकीन करना मुश्किल होता है कि इस सफलता के पीछे खिलाड़ियों के त्याग और समर्पण की कई कहानियां हैं। कोई नौ साल से अपने घर नहीं गया तो किसी को शादी के लिए बस दो दिन की छुट्टी मिली। किसी ने परिवार से दूर अकेले वक्त बिताया। इन सभी का संघर्ष भले ही अलग हो, लेकिन लक्ष्य एक था। अपनी निजी समस्याओं को पीछे छोड़ खिलाड़ी इकाई के रूप में प्रदर्शन करते रहे और ट्राफी जीत ली।
नौ साल बाद घर लौटेंगे कुमार कार्तिकेय
रणजी ट्राफी की सफलता ने मप्र के स्पिनर कुमार कार्तिकेय सिंह की वह प्रतिज्ञा भी पूरी करवा दी, जो उन्होंने नौ साल पहले ली थी। मूलत: उत्तर प्रदेश के रहने वाले कुमार कार्तिकेय ने यह कहकर अपना घर छोड़ दिया था कि जब क्रिकेट में कुछ बड़ा हासिल करेंगे, तभी लौटेंगे। वे उप्र में क्रिकेट खेलते थे, लेकिन सफलता नहीं मिली तो दिल्ली चले गए। वहां भी कोई कमाल नहीं दिखा सके। फिर कोच संजय भारद्वाज की सलाह पर मप्र की ट्रेन पकड़ी। मप्र ऐसा रास आया कि पहले रणजी टीम में चुने गए, फिर किस्मत से बीच सत्र में मुंबई इंडियंस ने अपने साथ जोड़ लिया। इसके बाद मप्र टीम ने रणजी ट्राफी भी जीत ली। कार्तिकेय बताते हैं, नौ साल से ज्यादा समय हो गया घर छोड़े। यही सोचा था कि कुछ बन जाऊंगा तो घर जाऊंगा। रणजी ट्राफी जीतने के बाद मम्मीपापा से बात हुई थी। वे बहुत खुश थे, घर बुला रहे थे। अब अगस्त में घर लौटूंगा। फिलहाल मैं बाहर क्रिकेट लीग खेलने की योजना बना रहा हूं। इसी सिलसिले में मुंबई आया हूं।
शादी के लिए मिली दो दिन की छुट्टी
कोच चंद्रकांत पंडित कप्तान आदित्य श्रीवास्तव की नेतृत्व क्षमता की हर जगह तारीफ कर रहे हैं। आदित्य के साथ वे पितापुत्र जैसा रिश्ता बताते हैं, लेकिन टीम की तैयारियों के दौरान अनुशासन के बीच आदित्य को भी कोई राहत नहीं मिली थी। पिछले साल आदित्य की शादी थी। तैयारियां हो चुकी थीं, लेकिन कोच पंडित ने उन्हें खुद की शादी के लिए भी ज्यादा दिनों की छुट्टी नहीं दी। आदित्य कोच के पास दस दिन की छुट्टी की अर्जी लेकर गए थे। मगर पंडित ने साफ कहा कि दो दिन से ज्यादा की छुट्टी नहीं मिल सकती। सारे रीतिरिवाज दो दिन में पूरे कर लो। नतीजतन आदित्य दो दिन बाद फिर टीम के साथ तैयारी करने लौट गए। आदित्य ने बताया, मैंने अपनी पत्नी और परिवार को समझाया कि हम एक मिशन पर हैं। रणजी ट्राफी जीतने का मौका बारबार नहीं मिलता। शुरू में थोड़ी सी नाराजगी थी, लेकिन सब मान गए। अब मैं अपने घर भोपाल लौटा हूं। अब हम हनीमून पर जाएंगे।
पूरा परिवार हैदराबाद में, शुभम अकेले रहे इंदौर में
मप्र की जीत के शिल्पकार रहे शुभम शर्मा के मुस्कुराते चेहरे को देखकर यकीन नहीं होता कि वे अभ्यास के लिए परिवार से दूर अकेले इंदौर में रहे। शुभम के भाई हैदराबाद में रहते हैं। मातापिता भी अधिकांश समय भाई के साथ ही हैदराबाद में रहते हैं। मगर शुभम वहां नहीं जा पाते। शुभम ने बताया, मैं दो साल से भाई से मिलने नहीं जा सका। मातापिता भी उनके साथ ज्यादा रहते हैं। ऐसे में मुझे अकेले इंदौर में रहना होता है। तैयारी शिविर के दौरान मप्र क्रिकेट संगठन भोजन व्यवस्था करता है। शेष दिनों में होटल में खाना खाता हूं। मेरे लिए रणजी ट्राफी ज्यादा महत्वपूर्ण थी और खुशी है कि इस त्याग का फल मिला। अब जल्द ही अपने परिवार के पास हैदराबाद जाने की योजना बना रहा हूं।
झुग्गी बस्ती में दिन गुजारे, अब बड़े घर की चाहत
मप्र टीम में शामिल युवा राहुल बाथम भोपाल के रोशनपुरा झुग्गी बस्ती में रहते थे। पिता की आय बहुत ज्यादा नहीं थी, लेकिन उन्होंने राहुल को क्रिकेट के सामान की किल्लत नहीं होने दी। इसी बस्ती में रहकर राहुल ने भारत के लिए अंडर19 विश्व कप खेला। विश्व कप के बाद उन्होंने दूसरी जगह घर तो ले लिया, लेकिन चोट के कारण करियर प्रभावित हुआ। मगर मेहनत जारी रखी और अब मप्र की रणजी विजेता टीम के सदस्य बनकर फिर योग्यता साबित की। राहुल ने मप्र के लिए टी20 और वनडे मैचों में अच्छा प्रदर्शन किया है। राहुल बताते हैं, इसी साल मेरी शासकीय नौकरी लगी है। अब चाहता हूं कि मातापिता के लिए बड़ा घर बनाऊं। रणजी ट्राफी विजेता टीम का सदस्य होना सम्मान की बात है, लेकिन मेरा लक्ष्य भारतीय टीम है। भारत के लिए खेलने का सपना पूरा होने तक मैं जश्न नहीं मना सकता।
Posted By: Hemant Kumar Upadhyay
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