Nai Najar Column Indore: अश्वनी शुक्ल, इंदौर (नईदुनिया)। इंदौर में बहुत कुछ अच्छा है, प्रेरक भी। कुछ खराब है तो उसमें यातायात की बिगड़ी व्यवस्था अव्वल है। अब आबादी ज्यादा है, वाहनों की संख्या काफी है, इसे लेकर चालकों का व्यवहार मनमाना भी है तो यह स्वाभाविक है, लेकिन पुलिस का इसे लेकर ढीला रवैया अवश्य मन को खिन्न करता है। जबकि प्रमुख चौराहों पर सीसीटीवी कैमरे हैं। वहां के फुटेज पुलिस कंट्रोल रूम में देखे भी जा सकते हैं, इसलिए किसी चौराहे पर खराब होती स्थिति को नियंत्रित करने की पहल दिखाई नहीं देती। क्या वहां यातायात व्यवस्था को लेकर कोई नई रणनीति नहीं बनाई जा सकती। उन सड़कों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए जिन पर शाम को दबाव बढ़ जाता है। यदि जानकारी होने के बाद भी कदम नहीं उठाए जाते तो इसे अनदेखी कहा जाएगा, इस मामले में हम कब स्मार्ट होंगे।
पोहा बनाइए, बहाना नहीं
पोहा इंदौर की पहचान और शहरवासियों का रोज का अरमान है। शहर में पोहा खाने के लिए बहाने की जरूरत तो कतई नहीं पड़ती, क्योंकि यह आदत में शुमार है। कई तरह की पार्टियों में पोहा पार्टी भी शामिल हो गई है। रविवार को नगर निगम की अगुवाई में यह पार्टी हुई। बताया गया कि शहर सिंगल यूज प्लास्टिक को विदाई दे रहा है। पार्टी करने वालों को पोहा इतना आकर्षित कर रहा था कि आयोजन के कारण यानी बहाने पर किसका ध्यान जाता। शहर ऐसी पार्टियां रोज करे और इतने नेक बहाने बार-बार मिलें लेकिन यदि पोहे से संतुष्टि मिल गई हो तो इस पर तो विचार हो कि क्या वास्तव में शहर सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त हो चुका है। कोई भी यह दावा इसलिए नहीं कर सकता कि सिंगल यूज प्लास्टिक दिख तो जाता ही है। फिलहाल तो इसे अर्धसत्य ही मानना चाहिए।
दिखाएं नहीं, साकार भी करवाएं सपने
इंदौर कोचिंग की भी राजधानी है। यहां विविध परीक्षाओं के लिए जितने निजी कोचिंग संस्थान और सुविधाएं हैं, उतने प्रदेश में कहीं और नहीं हैं। कोचिंग के गढ़ से बंपर परिणाम की भी अपेक्षा कोई गलत बात नहीं। सिविल सेवा परीक्षा के मामले में तो ये पूरी नहीं हुई हैं। प्रदेश से इस बार इस परीक्षा में टाप 100 में ही पांच अभ्यर्थी जगह बनाने में सफल रहे। छोटे शहरों और कस्बों के अभ्यर्थियों ने शानदार प्रदर्शन किया है। इस राष्ट्रीय परीक्षा में प्रदेश के युवाओं की सफलता दर का बढ़ना उत्साह बढ़ाने वाला है लेकिन यदि इंदौर को तैयारी का गढ़ कहा जाता है तो परिणाम आशानुकूल नहीं होना दावा करवाने वालों के लिए जरूर आत्मचिंतन का विषय है। यह सपनों का व्यवसाय है, इसलिए सपने दिखाने के साथ साकार भी करवाना जरूरी है।
दंगों से मिला सबक, खरगोन में बटालियन तय
रामनवमी के जुलूस पर पथराव के बाद खरगोन में हुए दंगों की आंच दूर तक महसूस की गई थी। दंगे पर काबू पाने में पुलिस की कमजोरी के कारणों की पड़ताल हुई तो पता चला कि अतिरिक्त बल यानी विशेष सशस्त्र बल (एसएएफ) दूर होने के कारण वहां पहुंचने में देरी हुई और नुकसान भी ज्यादा हुआ। अब खरगोन में एसएएफ की बटालियन स्थायी रूप से रहेगी। जमीन चिह्नित कर ली गई है। अन्य बटालियन से बल का इंतजाम भी किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने भी इस आशय की घोषणा की थी इसलिए इस बात की भी पूरी आशा है कि चुनाव से पहले नई बटालियन विधिवत रूप से काम शुरू कर दे। अनुभव से सबक लेना समझदारी है और यह अच्छे प्रशासन का प्रतीक भी है। वैसे भी कानून-व्यवस्था और आपदाओं के संबंध में लगातार समीक्षा होनी चाहिए। नए कदम भी उठाए जाने चाहिए।
Posted By: Hemraj Yadav
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