Sarkari Darbari: सरकारी दरबारी, जितेंद्र यादव।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मध्यप्रदेश में जितने दिन रही, भाजपा नेताओं के शब्द-बाणों के तरकश भरे रहे। यात्रा के महाराष्ट्र के रास्ते प्रवेश से लेकर राजस्थान की ओर कूच करने तक शब्द-बाणों की वर्षा राहुल का पीछा करती रही। जब-जब राहुल की सभा हुई या राहुल कुछ बोले, भाजपा ने हर बार शब्दों के तीर चलाने में कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ी। बड़ा मोर्चा तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने संभाला जो राहुल के मध्यप्रदेश से जाते-जाते भी तीखे शाब्दिक बाण चलाने से नहीं चूके। बाकी नेताओं ने मोर्चा संभाला सो अलग। कुछ भाजपा नेताओं ने सवालों की सूची बनाकर जारी की तो कुछ कार्यकर्ताओं ने मोदी-मोदी के नारे लगाकर इंटरनेट मीडिया पर छाने की कोशिश की। पर इन तीरों की परवाह किए बिना यात्रा आगे बढ़ती रही। राहुल के जाते ही राजनीतिक गलियारों में फिर सन्नाटा है।
पहली पारी में अफसरी, दूसरी में राजनीति
शासकीय नौकरी में रहने के दौरान ही कई अधिकारियों के मन में सक्रिय राजनीति में जाने की लालसा पलती रहती है। अंदर ही अंदर यह पल्लवित होती रहती है और सेवानिवृत्ति के बाद अचानक खिल उठती है। सहकारिता विभाग के संयुक्त आयुक्त जगदीश कनौज सेवानिवृत्ति के बाद इसी राह पर हैं। वे आदिवासी नेता के रूप में जगह बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसके लिए वे नौकरी में रहते भाजपा और कांग्रेस दोनों के बड़े नेताओं के संपर्क में रहे। अब सेवानिवृत्त होने के बाद वे खुलकर राजनीति में आने का मनसूबा बना चुके हैं। माना जा रहा है कि उनकी नजर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित धार जिले की दो और खरगोन जिले की एक सीट पर है। पार्टी कौन-सी होगी यह तो तय नहीं, लेकिन उनकी पहली पसंद तो भाजपा ही है, लेकिन कांग्रेस नेता भी उनको चुनाव लड़ने का प्रस्ताव देते रहे हैं।
गुजरात में गूंजी मालवा-निमाड़ के नेताओं की आवाज
गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार भी मालवा-निमाड़ के भाजपा नेताओं की आवाज भी खूब गूंजी। मध्य प्रदेश की सीमा से लगे सात जिलों की 37 विधानसभा सीटों पर इंदौर से भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष जीतू जिराती और खरगोन के श्याम महाजन ने कमान संभाली। उनके साथ मध्य प्रदेश के 90 नेता वहां तीन महीने से अधिक समय तक डेरा डाले रहे। इधर, इंदौर से नगर उपाध्यक्ष नारायण पटेल, नानूराम कुमरावत और अनंत पंवार जैसे संगठन में काम करने वाले नेताओं को भेजा गया था। अब गुजरात चुनाव संपन्न् हो चुका है और सभी नेता लौट आए हैं। बेहतर परिणाम आए तो इन नेताओं को मध्य प्रदेश में पारितोषिक मिलने की उम्मीद है। कुछ को एक साल बाद होने वाले प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी फायदा मिल जाए तो आश्चर्य नहीं। वैसे कुछ लोगों पर गुजरात में काम करने का ठप्पा लगना ही बड़ा उपहार हो गया है।
सह गए तो आबकारी विभाग में राहत की सांस
जिले के प्रशासनिक मुखिया के पद से मनीषसिंह का हटना और नए कलेक्टर इलैया राजा टी का आना जिले के आबकारी अधिकारियों के लिए राहत बन गया है। आबकारी विभाग में एक के बाद एक घोटाले सामने आने से आबकारी अधिकारी मुश्किल में फंसे हुए थे और ऊपर से सिंह की सख्ती से और बुरा हाल था। शराब ठेके लेने में फर्जी एफडीआर का मामला हो या भांग माफिया पर शिकंजा कसने में कुछ लोगों को बचाने का मुद्दा, आबकारी अधिकारी सिंह के निशाने पर रहे। इसमें किया-धरा आबकारी अधिकारियों का था और आंच कलेक्टर पर आ रही थी, इसलिए कुछ अधिकारी निलंबित हुए तो कुछ को जिले से बाहर का रास्ता दिखाया गया। पर सिंह के जाते ही अब तूफान शांत-सा लगता है। इसीलिए कुछ अधिकारी वापस इंदौर आने की जुगाड़ में जुट गए ह
Posted By: Sameer Deshpande
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