Khel Khel Mein Indore: खेल खेल में, कपीश दुबे,
चुनाव के पहले भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश भरने और उन्हें एकजुट करने में लगी है। पार्टी में कार्यकर्ताओं को देवलुल्य की संज्ञा तक दी जाती है। राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भोपाल में हुई बैठक में कार्यकर्ताओं की अनदेखी पर टिप्पणी की थी, लेकिन मगर गत दिनों शहर में हुई नगर कार्यसमिति की बैठक में कई पुराने नेताओं की पूछपरख नहीं हुई, जिसकी चर्चा पार्टी के अंदर ही चल पड़ी। कइयों को बुलावा नहीं पहुंचा और जो वरिष्ठ आए थे उन्हें मंच पर बुलाया नहीं गया। इनमें प्रदेश प्रवक्ता गोविंद मालू जैसे वरिष्ठ शामिल हैं। सबके बीच निगाहें सत्यनारायण सत्तन और भंवरसिंह शेखावत को भी तलाशती रहीं। आमंत्रितों की सूची में इनका भी नाम था, लेकिन आए नहीं। दोनों पार्टी के रवैये पर नाराजगी जता चुके हैं, मनाने का प्रयास भी हुआ, लेकिन लगता है प्रयास नाकाफी रहे। खैर, जो नजर नहीं आए उनमें राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और महापौर पुष्यमित्र भार्गव भी थे।
सिंधिया के प्रतिनिधि होंगे विजयवर्गीय
प्रदेश के क्रिकेट में सत्ता की कुर्सी पर कोई भी बैठे, फैसला ज्योतिरादित्य सिंधिया की रजामंदी से ही होता है। फैसलों के मायने तलाशने की क्रिकेट के गलियारों में पुरानी परंपरा सी है। इन दिनों चर्चा अमिताभ विजयवर्गीय की है। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के साथ नजदीकी के चलते क्रिकेट की सियासत में लंबा वनवास बिता चुके हैं। इस बार एमपीसीए के चुनाव में पर्चा भरने को तैयार थे, लेकिन सिंधिया के आग्रह पर कदम पीछे खींच लिए थे। अब विजयवर्गीय को बीसीसीआइ की बैठक में एमपीसीए का प्रतिनिधित्व करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसे सिंधिया और विजयवर्गीय के बीच बढ़ती नजदीकी माना जा रहा है। वैसे भी विजयवर्गीय पहले भी बीसीसीआइ में जब भी किसी जिम्मेदारी को निभाने गए, इंदौर के लिए सौगात लेकर लौटे हैं। इस बार उनके प्रबंधन कौशल का शहर को क्या फायदा मिलता है, इसपर सभी की निगाह होगी।
अपने ही नेता के लिए वक्त नहीं
कांग्रेस पार्टी में ‘गांधी’ नाम का सिक्का कितना चलता है, यह बताने के लिए शब्द खर्च करने की जरूरत नहीं है। मगर राजनीति में चेहरा उसी को दिखाया जाता है, जिसकी नजर में चढ़ना होता है। बड़े नेताओं के आगमन पर शहर में पोस्टर लगाने और विज्ञापन देने की कवायद भी इसी कारण होती है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भीड़ के धक्के खाकर भी चेहरा दिखाने सभी कांग्रेसी पहुंच गए थे। मगर गत दिनों राहुल के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की पुण्यतिथि थी। यहां शृद्धासुमन व्यक्त करने गिनती के कांग्रेसी और चंद बड़े नेता पहुंचे। शहर के अधिकांश पार्षदों ने भी मानों कार्यक्रम से दूरी बना ली थी। कांग्रेस में न तो भाजपा जैसा संगठन का अनुशासन है और न ही अनुशासनात्मक कार्रवाई का डर। पहले भी ‘गांधी’ परिवार के नेताओं से जुड़े ऐसे कार्यक्रमों में नेताओं की गैरमौजूदगी दिखती रही है। कांग्रेस में अपने ही नेताओं के प्रति सम्मान का भाव कब आएगा, इसकी चर्चा सभी जगह है।
दिग्विजय की सांवेर में सक्रियता के मायने
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इन दिनों चुनाव से पहले विभिन्न विधानसभाओं में रणनीतिक बैठकें कर रहे हैं। मंगलवार को इंदौर में भी कार्यक्रम की योजना थी, लेकिन हो न सका। दिग्गी राजा सांवेर से होकर आगे बढ़ गए। इंदौर आए, लेकिन सौजन्य भेंट के लिए। पार्टी के अंदर ही कारणों की तलाश शुरू हो गई। अंदरखाने से छनकर आ रहीं खबरें बता रही हैं कि शहर में तीन विधानसभाओं में पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यक्रम की योजना थी। मगर स्थानीय स्तर पर मंडलम सेक्टर की सूची ही तैयार नहीं थी। कुछ बड़े नेताओं ने कथित कारणों से कदम भी पीछे खींच लिए और आनन-फानन में विकल्प तैयार नहीं हो सका। वैसे कांग्रेस का निशाना भाजपा से ज्यादा ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं और सांवेर में दिग्विजय की सक्रियता को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।
Posted By: Sameer Deshpande
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