Indore Dr Jitendra Vyas Column: डा, जितेंद्र व्यास, इंदौर, नईदुनिया। जिन पर पूरे तंत्र के संचालन का जिम्मा होता है, उनकी याददाश्त कमजोर हो जाती है। वे आदेश पारित करते हैं और भूल जाते हैं। याद भी तब आता है, जब कोई गंभीर घटना घट जाती है। फिर ताबड़तोड़ कुछ दिन कार्रवाई होती है और साहब फिर भूल जाते हैं। अब उज्जैन में चाइना डोर से गला कटने से हुई युवती की मौत की घटना को ही लीजिए। वर्षों पहले से इस तरह के धागे के उपयोग और बिक्री पर प्रतिबंध है। इसके बाद भी हर वर्ष मकर संक्रांति के आसपास ये बाजार में आता भी है और बिकता भी है। छोटी-मोटी घटनाएं भी होती हैं, लेकिन प्रतिबंध तब याद नहीं आते। जिम्मेदारों की कमजोर याददाश्त से परेशान लोग अब यही कह रहे हैं कि कुछ लीजिए साहब ताकि तंत्र की याददाश्त बेहतर हो सके और फिर किसी राहगीर को अपनी जान इस वजह से नहीं गंवानी पड़े।
'दिग्विजयी' यू टर्न का राज. . .
संघ का नाम आते ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कुछ ऐसा कह जाते हैं कि प्रदेश ही नहीं, देशभर में तीखी प्रतिक्रिया और कांग्रेसियों को चिंता होने लगती है। पिछले दिनों इंदौर प्रवास पर आए उन्होंने मंच से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदुत्व पर लंबा-चौड़ा भाषण देते हुए संघ की तुलना दीमक तक से कर डाली। भाजपा नेताओं और हिंदू संगठनों के पदाधिकारियों ने इस पर तीखा विरोध भी दर्ज करवाया, लेकिन अगले ही दिन दिग्विजय सिंह ने यू टर्न लेते हुए कह दिया कि मेरे मित्रों ने मुझे बताया कि मेरी छवि हिंदू विरोधी बनती जा रही है। जबकि मैं कट्टर हिंदू हूं। घर में ज्योत जलती है और व्रत भी रखता हूं। पूर्व मुख्यमंत्री के पहले के बयान से हक्के-बक्के कांग्रेसी जब तक इसका अर्थ तलाश पाते, तब तक उनका नया बयान सामने आ गया। अब राजनीतिक गलियारों में इस यू टर्न के मायने तलाशे जा रहे हैं।
11 प्रतिशत वोटों के सहारे 'चौथी लहर' की तलाश
प्रदेश में विधानसभा चुनाव फिलहाल भले ही दूर हों, लेकिन भाजपा ने इसकी तैयारी अभी से जोर-शोर से शुरू कर दी है। सबसे ज्यादा ध्यान मालवा और निमाड़ क्षेत्र पर दिया जा रहा है। बूथ स्तर तक के इस माइक्रो मैनेजमेंट अभियान में पूरा जोर इसी पर है कि हर मतदान केंद्र परअपने वोटों में 11 प्रतिशत का इजाफा कर लिया जाए। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए मंत्री, विधायक, सांसदों के साथ ही संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों को भी जिम्मेदारी सौंपी गई है। संगठन से यह स्पष्ट निर्देश भी नेताओं को दिए गए हैं कि जिन क्षेत्रों में ज्यादा नुकसान हुआ था, वहां सबसे ज्यादा ध्यान देना है। अब देखना यह है कि रोज-रोज के आयोजनों से परेशान कार्यकर्ता भाजपा की 'चौथी लहर' के लिए फिर से मैदान संभालते हैं या मोबाइल मैनजमेंट के भरोसे इस अभियान को पूरा करने में जुट जाते हैं।
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा. . .
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा. . . ये जुमला पिछले कई महीनों से शहर के पूर्वी क्षेत्र के कई इलाकों के घरों में रोज दोहराया जाता है। दरअसल यहां घरों में आने वाले पेयजल का रंग कभी मटमैला होता है, कभी काला तो कभी बदबूदार और हल्का पीला। नर्मदा का तीसरा चरण आने और सालाना 250 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने के बाद भी जिम्मेदार घरों तक स्वच्छ जल नहीं पहुंचा पा रहे हैं। तमाम आधुनिक तकनीक और संसाधनों के बावजूद नर्मदा जल के साफ नहीं होने के तर्क अब भी पुराने ही हैं, जैसे- 'पाइप लाइन पुरानी है', 'सीवरेज से रिसाव होने के कारण पानी गंदा आ रहा है'। वहीं साफ पानी नहीं मिलने से परेशान लोग मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर भी शिकायत कर रहे हैं। उधर नगर के कई इलाकों में अभी से जलसंकट के हालात हैं, लेकिन जिम्मेदारों के पास इसका भी उत्तर नहीं है।
Posted By: Sameer Deshpande