Taste Of Indore: इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि। हर स्थान का अपना जायका होता है जो न केवल वहां की भौगोलिक परिथितियों के अनुरूप तैयार होता है बल्कि वहां के लोगों की कार्यशैली और पसंद को भी दर्शाता है। जिस तरह मालवा की शाही थाली में दाल-बाफला, कढ़ी, लड्डू, सब्जी, चटनी शामिल है उसी तरह उत्तराखंड में अवसर विशेष पर बनाए जाने वाले व्यंजनों की फेहरिस्त में शामिल है मंडवे की रोटी, गैद की दाल, भात के दुपके, ककड़ी का रायता, राई की सब्जी, आलू के गुटके, भांग की चटनी, गुगतिया और भात। मालवा में भी यह भोजन न केवल पकता है बल्कि खाया और खिलाया जाता है।

त्यौहार ही नहीं बल्कि मेहमानों की आवभगत और इंदौरियों की विशेष मांग पर शहर में भी उत्तराखंड का यह पारंपरिक व्यंजन बन रहा है। यहां आयोजित होने वाले समारोह में भी इन व्यंजनों के स्टाल लगते हैं जिन्हें उत्तराखंडी ही नहीं बल्कि मालवी भी पसंद करते हैं।

शहर में इस पारंपरिक भोजन की मूल प्रकृति को आज भी बरकरार रखते हुए उसे औरों को खिलाने का काम कर रही हैं गांधी नगर निवासी कमला भट्ट। कमला भट्ट ने तो इस शहर में भी राई की सब्जी की जुगाड़ अपने घर के बगीचे में ही कर ली है ताकि बाजार की ओर देखना न पड़े। राई की सब्जी असल में पत्तेदार सब्जी है जिसकी पत्ती पालक की तरह ही चौड़ी होती है और इसकी सब्जी भी लगभग पालक की सब्जी की तरह ही बनती है। इसका साथ मंडवे की रोटी देती है। रागी को ही मंडवा कहा जाता है और इसकी रोटी इसके साथ खाई जाती है।

दूसरी सब्जी भात के दुपके है जो कि सोयाबीन की तरह एक बीज होता है जिसे सिलबट्टे पर मोटा पीसकर उसे मसालों में भूनकर तैयार किया जाता है। इसके अलावा आलू के गुटके भी बनाई जाती है। यह भी सब्जी है जो उबले आलू के टुकडों से तैयार होती है और उसका स्वाद बढ़ते हैं खड़े मसाले और खास तौर पर डाली जाने वाली खड़ी लालमिर्च का बघार। उत्तराखंड में कोई भी भोजन तब तक अधुरा माना जाता है जब तक कि उसमें दाल-चावल न हो। भात के बिना भोजन बेकार की बात यहां के लोगों की संस्कृति का हिस्सा है और इसलिए इस खास थाली में भात (चावल) का साथ देने लिए गैत की दाल बनाई जाती है।

भांग यूं तो नशे का पर्याय है लेकिन इसे सही तरह से उपयोग में लाया जाए तो यह औषधि का काम करती है और इसका प्रमाण भांग की चटनी से मिलता है। भांग के सूखे बीजों को भूनकर उसमें हरी मिर्च, हरा धनिया, नमक और नींबू डालकर सिलबट्टे पर पीसा जाता है और फिर उसे परोसा जाता है। जहां तक बात मिठाई की है तो चावल की सेल का नाम सबसे पहले आता है। चावल के आटे में दौन (एक प्रकार की जड़) को पीसकर मिलाया जाता है और फिर इन दोनों को सिलबट्टे पर पीसकर फैटा जाता है। इसमें शकर का घोल डालकर इतना गाढ़ा कर लिया जाता है कि उसे जलेबी की तरह शकल देकर घी में तला जा सके। हां पर इसके लिए किसी प्रकार के सांचे का उपयोग नहीं होता।

Posted By: Sameer Deshpande

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