जितेंद्र यादव. इंदौर नईदुनिया। प्रदेश सहित देश के कपास उत्पादक किसानों के लिए यह साल बहुत चौंकाने वाला साबित हो रहा है। मध्यप्रदेश में कपास का मुख्य उत्पादक क्षेत्र निमाड़ है, लेकिन इस बार कपास का यह कटोरा खाली रह जाने वाला है। पैदावार में लगभग 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की जा रही है। नतीजा यह है कि किसानों को कपास का वह भाव मिल रहा है, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी। ऐसे हालात के पीछे दो मजबूत कारण सामने आ रहे हैं। एक तो मध्यप्रदेश सहित भारत में स्पीनिंग मिलों में रुई की खपत बढ़ गई है और दूसरी तरफ भारतीय रुई की विदेश में मांग भी बढ़ी है।
कम पैदावार के बावजूद कपास उत्पादक किसानों के चेहरे इसलिए खिले हुए हैं कि उनको शुरुआती सीजन के मुकाबले कपास के दोगुने भाव मिल रहे हैं। इस साल शुरुआत में मंडियों में कपास 6 हजार रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था, जो इस समय 10, 11 और 12 हजार रुपये प्रति क्विंटल खरीदा जा रहा है। मध्यप्रदेश काटन प्रोसेसर्स एंड जिनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष कैलाश अग्रवाल का अनुमान है कि निमाड़ सहित प्रदेश के अन्य कपास उत्पादक इलाकों में लगभग 20 लाख गठान रुई का उत्पादन होता है, लेकिन इस बार यह 16-17 लाख गठान ही हो पाएगा। भीकनगांव के कपास कारोबारी श्रीकृष्ण अग्रवाल के मुताबिक, देशभर में भी ऐसी ही गिरावट देखी जा रही है। भारत में हर साल 3.5 से 3.75 करोड़ गठान रुई पैदा होती है, लेकिन इस बार यह लगभग 3 करोड़ पर ठहरने की संभावना है।
सफेद सोने में इसलिए उछाल: चीन से परहेज, घरेलू उद्योगों में खपत बढ़ी
कपास को सफेद सोना भी कहा जाता है। इसकी कीमतों में उछाल के राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कारण हैं। यार्न और कपड़ा बनाने वाले भीलवाड़ा समूह के निमरानी (खरगोन) स्थित मराल ओवरसीज कारखाने के अध्यक्ष एसएन गोयल का कहना है कि इस समय पूरी दुनिया में कपास की कीमतें बढ़ रही हैं। बताया जाता है कि अमेरिका और अन्य देशों ने काटन उद्योग में कर्मचारियों के शोषण के कारण चीन से कपास और इससे बना माल लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है। दूसरी तरफ भारत सरकार ने भी 10 प्रतिशत आयात शुल्क लगाया हुआ है इसीलिए विदेश के साथ भारत में भी तेजी बनी हुई है। भारतीय कपास निगम (सीसीआइ) के मुख्य महाप्रबंधक मनोज बजाज बताते हैं, भारत से बांग्लादेश, वियतनाम आदि देशों में भी कपास जा रहा है। इस साल भी 60-70 लाख गठान के विदेशी अनुबंध हो चुके हैं। दूसरी तरफ घरेलू उद्योगों में खपत बढ़ने से भी कपास के भाव बढ़े हैं। गत वर्ष घरेलू उद्योगों में रुई की खपत 3.10 करोड़ गठान हुई थी। कपास के भावों में ऐतिहासिक तेजी के कारण ही इस साल सीसीआइ मध्यप्रदेश के 21 केंद्रों पर खरीदी ही नहीं हुई। क्योंकि कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 6 हजार रुपये प्रति क्विंटल है जबकि बाजार में 10-12 हजार रुपये तक बिक रहा है।
बेमौसम बारिश और गुलाबी इल्ली ने खाया कपास
इस साल यहां कपास की पैदावार इसलिए कम रही क्योंकि बेमौसम बारिश और गुलाबी इल्ली दोनों ने नुकसान पहुंचाया। नागपुर के केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान के कपास सुधार विभाग के प्रधान विज्ञानी डा. वीएन वाघमारे ने बताया कि इस साल बेमौसम बारिश से कपास को काफी नुकसान हुआ। रही-सही कसर पिंक बालवार्म गुलाबी इल्ली के प्रकोप ने पूरी कर दी। गुलाबी इल्ली पर नियंत्रण के लिए हमने मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना, पंजाब व हरियाणा जैसे आठ राज्यों में प्रोजेक्ट चलाया है। इसके लिए मध्यप्रदेश के खंडवा सहित देश के 21 जिलों के 1050 एकड़ में प्रयोग किया जा रहा है। किसानों को जागरूक किया जा रहा है। इंदौर के संयुक्त संचालक कृषि आलोक मीणा का कहना है कि निमाड़ में कपास का उत्पादन इस साल कम रहेगा, लेकिन फसल कटाई प्रयोग के आंकड़े सामने के बाद ही स्थिति साफ होगी।
प्रदेश के इन इलाकों में उगता है कपास - खरगोन, खंडवा, बड़वानी, बुरहानपुर के अलावा धार, रतलाम, देवास और छिंदवाड़ा जिलों के कुछ हिस्से।
Posted By: Hemraj Yadav
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