Jabalpur News : जबलपुर (नई दुनिया, अतुल शुक्ला) । मोटे अनाज की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए इन फसलों को राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय बाजार में लाने की कवायद शुरू हो गई है। इस काम में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, किसानों की मदद कर रहा है। विवि के डायरेक्टर रिसर्च विभाग के सात विज्ञानिकों की टीम ने मोटे अनाज के तौर पर माने जाने वाली कुटकी फसल का उत्पादन बढ़ाने, इसका संरक्षण करने और अंतराष्ट्रीय बाजार में महंगे दामों में बेचने के लिए इसका जीआइ टैग (पेटेंट) लेने की तैयारी में जुटा है। इसके लिए विज्ञानिकों ने चेन्नाई के जियोग्राफिकल इंडीकेशन रजिस्ट्री में आवेदन भी है।
विज्ञानिकों के मुताबिक यदि कुदकी पर टीआइ टैग मिलता है तो देश-विदेश में डिंडौरी क्षेत्र में पैदा होने वाली कुटकी सबसे शुद्ध होगी। किसान इस फसल को तय दाम से दो से तीन गुना तक बेंच सकेंगे। मध्यप्रदेश में अभी तक बालाघाट के चिन्नाौर चावल को ही जीआइ टैग मिला है, जो विवि की सबसे बड़ी सफलता रही।
एक साल सिर्फ दस्तावेज जोड़ने में लगे
विवि के डायरेक्टर रिसर्च डा. जीके कोटू ने बताया कि किसी भी फसल का जीआइ टैग लेना इतना आसान नहीं है। हमें न्नाई के जियोग्राफिकल इंडीकेशन रजिस्ट्री को यह सिद्ध करना होता है कि जिस फसल के लिए हम जीआइ टैग ले रहे हैं वह खास क्षेत्र विशेष के लिए कितनी खास और उपयोगी है। इसके गुण, इतिहास और विज्ञानिक तत्थ प्रमाणित करने होते हैं। यह सब हमने कुटकी के लिए भी किया है। हालांकि आवेदन के बाद चेन्नाई के जियोग्राफिकल इंडीकेशन रजिस्ट्री के अधिकारी, इन तथ्यों की जांच करेंगे। इसके बाद राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय स्तर पर इसकी जांच होगी। इसके बाद ही तय होगा कि इस फसल पर डिंडौरी के किसानों को टीआइ टैग दिया जाए या नहीं।
1907 के ब्रिटिश कालीन बजट में उल्लेख
कोदू और कुटकी का इतिहास खंगालने में ही कृषि विज्ञानिकों को महीनों लगे। उन्होंने देश और विदेश के कई जनरल, पेपर और रिसर्च का अध्ययन किया। इस दौरान उन्हें कुटकी फसल का जिक्र 1907 में ब्रिटिश कालीन गजट में मिली। डा. जीके कोटू बताते हैं कि कुटकी के बारे में इस गजट में जिक्र किया गया है। वहीं ब्रिटिश लेखक द्वारा बैगा पब्लिकेशन की एक बुक में बैगा जाति द्वारा डिंडौरी में इस फसल को लगाए जाने का भी उल्लेख है। अग्रेजों के समय मंडला, डिंडौरी से लेकर दिल्ली और मुंबई के सालों पुराने गजट का अध्ययन किया ताकि इस फसल का डिंडौरी की फसल के तौर पर पहचान दिलाई जा सके।
किसान और क्षेत्र को फायदा
- जीआइ टैग मिला तो डिंडौरी क्षेत्र में पैदा होने वाली कुटकी अंतराष्ट्रीय स्तर पर शुद्धता के तौर पर पहचाना जाएगा।
- डिंडौरी के किसान द्वारा इस फसल का राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर दोगुना दाम मिलेगा।
- इस फसल का कमर्शियल उपयोग बढ़ेगा, जिसका सीधा फायदा किसानों को मिलेगा।
- प्रदेश सरकार द्वारा इस फसल के उत्पाद करने वाले किसानों को आर्थिक सहायता भी मिलेगा।
मोटे अनाज के तौर पर जानी जाने वाली कुटकी मुख्यतौर पर डिंडौरी में ही होती है। इस फसल का जीआइ टैग लेने के लिए विवि के विज्ञानिकों ने रात-दिन मेहनत की है। आवेदन भी किया जा चुका है। अब जांच टीम इसे परखेगी, जिसमें समय लगेगा । एक बाद टैग मिलने के बाद डिंडौरी के किसानों की इस फसल को राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी और दाम भी मिलेगा।
डा. पीके मिश्रा, कुलपति, जनेकृविवि
Posted By: Jitendra Richhariya
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