जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। राष्ट्र निर्माण के लिए सात समुंद्रर पार से भी कार्यकर्ता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अधिवेशन में शामिल होने आए। ये सभी विदेशों में रहकर भी हिंदुत्व और राष्ट्र निर्माण के मिशन में जुटे हुए है।
ब्रिटेन में हिंदुत्व के लिए छोड़ा पद: रश्मी सामंत आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष है। ये मूल रूप से उड़पी कर्नाटक की रहने वाली है। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से रिनेवल एनर्जी पर स्नातक कर रही थी। रश्मी सिर्फ दो हफ्ते ही छात्र संघ अध्यक्ष रहीं। इन्हें हिंदूत्व के लिए एजेंडा चलाने की वजह से विरोध का सामना करना पड़ा जिस वजह से इन्होंने पद से खुद ही इस्तीफा दिया।
रश्मी का कहना है कि वह पहली भारतीय महिला थी जो छात्र संघ में चुनी गईं। निर्वाचित होने के बाद उनके परिवार के इंटरनेट मीडिया अकाउंट से पुराने पोस्ट का हवाला दिया गया। जिसमें हिंदूवादी पोस्ट साझा हुई थी। विरोध के बाद मैने खुद पद छोड़ा। जबकि यूनिवर्सिटी की जांच में सहीं साबित हुई थी। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सोच सच्चे देशभक्त की है इस वजह से मैं यहां इंडियन ओवरसीज स्टूडेंट की टीम से जुड़ी हुई है।
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परिवारिक मिलन: नेपाल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्राज्ञिक विद्यार्थी परिषद की संगठन मंत्री संगीता कैनी 2017 से संगठन में कार्य कर रही है। उनका कहना है कि नेपाल में परिषद की नीति के मुताबिक विद्यार्थियों की समस्याओं को लेकर लगातार काम किया जा रहा है। जबलपुर में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन में आकर परिवार जैसा माहौल लग रहा है। विदेशी होने जैसी कोई बात महसूस ही नहीं हो रही है। विभिन्न संस्कृति के लोगों से मेलजोल बढ़ रहा है।
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हिंदुत्व के लिए मिलती है धमकी: बंग्लादेश में सनातन विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशल वरन चक्रवर्ती। ये चटोगांव यूनिवर्सिटी बंग्लादेश में प्राध्यापक है। अधिवेशन में पर्यवेक्षक की तरह आए है। कुशल वरन बताते है कि बंग्लादेश में मुस्लिम समुदाय अधिक होने के कारण संचालन करना मुश्किल होता है। कई बार हिंदुत्व का एजेंडा चलाने के लिए कट्टरपंथियों से धमकी भी मिलती है। उनके अनुसार वे 300 से ज्यादा शाखा का संचालक कर रहे हैं। हर शाखा में 200 से 250 विद्यार्थी शामिल है।
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ये अहसास अलग: अरूणाचाल प्रदेश से आई इनम्लू देलंग, दगपनलू तथा रिचिन के मुताबिक अधिवेशन एक उत्सव है जिसमें हर कोई सराबोर हो जाता है। यहां अलग ही अहसास होता है। दगपनलू के मुताबिक उसने तीसरी बार अधिवेशन में शिरकत की है जबकि इनम्लू और रिचिंन का पहली दफा विद्यार्थी परिषद के अधिवेशन में आना हुआ है।
Posted By: Ravindra Suhane