जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। पिछले एक दशक से जनहित याचिका लंबित है फिर भी महज कागजी रिपोर्ट से काम चलाया जा रहा है। अतः अब कार्रवाई को हकीकत की जमीन पर उतारें। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को जमकर फटकार लगाने के साथ यह दिशा-निर्देश पिछले दिनों दिया था। साथ ही पूर्व प्रतिवेदनों का सारांश भी तलब किया था, जिसके बाद हलचल बढ़ गई है।
मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने अपनी तल्ख टिप्पणी में कहा था कि पिछले एक दशक से जनहित याचिका लंबित है। इसके बावजूद राज्य सरकार महज कागजी रिपोर्ट पेश कर खानापूर्ति कर रही है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है। इसी के साथ हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि नियम विरुद्ध आटो संचालन पर अंकुश लगाने ठोस कार्ययोजना पेश करें। यही नहीं पूर्व में दिए गए निर्देशों के पालन में जो पालन प्रतिवेदन पेश किए गए हैं, उनका सारांश भी प्रस्तुत किया जाए।
वर्ष 2013 में सतीश वर्मा ने शहर के साथ प्रदेशभर में बेलगाम और नियम विरुद्ध आटो संचालन को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की थी। बाद के वर्षों में इसी मुद्दे को लेकर कुछ अन्य याचिकाएं भी संलग्न हुईं। पूर्व में हाईकोर्ट ने कई बार दिशा निर्देश जारी किए, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला। इस मामले पर सुनवाई के दौरान सरकार द्वारा कार्रवाई रिपोर्ट पेश की गई। रिपोर्ट देखने के बाद कोर्ट ने इस पर असंतोष के साथ नाराजगी जाहिर की थी।
जनहित याचिकाकर्ता अधिवक्ता सतीश वर्मा ने अपना पक्ष स्वयं रखते हुए दलील दी थी कि सरकार कागजी रिपोर्ट पेश कर गुमराह कर रही है। सड़क पर वास्तिविक स्थिति कुछ है। आटो चालक ओवर लोडिंग के सहित सारे नियम तोड़ रहे हैं। आटो में ड्राइवर सीट पर चार सवारी और पीछे 15 सवारी तक बैठा कर ले जा रहे हैं, जबकि एक बार में केवल तीन सवारी ले जाने का ही नियम है। बहस के दौरान याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि केन्द्र सरकार के मोटर व्हीकल संशोधन नियम 2019 मध्य प्रदेश में लागू नहीं किए जा रहे हैं। इस नियम से पूरे प्रदेश में ट्रैफिक और यातायात में सुधार लाया जा सकता है। इसमें भारी जुर्माने का प्रावधान भी है। पूर्व में राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में वादा किया था कि प्रदेश में सेंट्रल मोटर वीकल एक्ट 2019 लागू करने पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जो शर्मनाक है।
Posted By: Mukesh Vishwakarma
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