
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। हाई कोर्ट ने राजधानी भोपाल में पेड़ों की कटाई के मामले में चर रही सुनवाई के बीच कलेक्टर कार्यालय सागर में एक हजार पेड़ काटे जाने के मामले पर भी संज्ञान ले लिया। कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा कि आप खुशनसीब हैं जो मध्य प्रदेश में रहते हैं। पेड़ों की कटाई की अनुमति देने वाले अधिकारी कुछ दिन प्रदूषित प्रदेशों में रहकर देखें तब उन्हें इसकी अहमियत समझ में आएगी। 50 साल पुराने पेड़ काटकर विकास नहीं, विनाश कर रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने भोपाल और सागर में भारी पैमाने पर हो रही पेड़ों की कटाई को लेकर राज्य सरकार, रेलवे और प्रशासनिक अधिकारियों से कड़ी पूछताछ की। कोर्ट ने दो टूक कहा कि राजधानी और अन्य जिलों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ग्रीन कवर का सीधा विनाश है, जिसे विकास का नाम नहीं दिया जा सकता।
हाई कोर्ट भोपाल में पेड़ों की कटाई पर लगाई गई रोक को भी बरकरार रखा। विगत सुनवाई में जिन सात वरिष्ठ अधिकारियों को तलब किया था, वे कोर्ट में उपस्थित हुए। केवल पश्चिम मध्य रेलवे के महाप्रबंधक की जगह डीआरएम भोपाल ने उपस्थिति दर्ज कराई।
राज्य शासन की ओर से कोर्ट को अवगत कराया गया कि भोपाल में 244 पेड़ों में से 112 को पुनर्स्थापित किया गया है और इसकी तस्वीरें कोर्ट के सामने पेश की गईं। लेकिन तस्वीरें देखकर कोर्ट भड़क उठा। कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसे ट्रांसप्लांटेशन से पेड़ नहीं बचते, मर जाते हैं। बताइए उस अधिकारी का नाम जिसने इसे ट्रांसप्लांटेशन कहा है। 50-60 साल पुराने पेड़ों को काटकर यदि नए पेड़ लगाए जाते हैं, तो उन्हें भी इतना ही समय लगेगा उपयोगी बनने में। इसलिए ग्रीन कवर को इस तरह नष्ट कर, उसे विकास कहना गलत है। सुनवाई के दौरान यह बड़ा तथ्य भी सामने आया कि एनजीटी के निर्देशों के बावजूद पेड़ कटाई की अनुमति देने का अधिकार राजपत्रित वन अधिकारी या नगरीय निकाय आयुक्तों को दिया गया था, लेकिन उन्होंने यह अधिकार अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को सौंप दिया, जो नियमों के विरुद्ध है। कोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही निरूपित किया।
हाई कोर्ट ने रेलवे से पूछा कि वंदे भारत ट्रेन के शेड के लिए 8000 पेड़ों की कटाई की जानकारी सामने क्यों आई। रेलवे की ओर से बताया गया कि केवल 435 बबूल के पेड़ काटे गए हैं और यह वृक्ष च्नेशनलाइज्डज् प्रजातियों की सूची में नहीं आते, इसलिए अनुमति जरूरी नहीं थी। इस पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि गाइडलाइन प्रस्तुत करें जिसमें लिखा है कि आप पेड़ काटने से पहले अनुमति नहीं लेंगे।” रेलवे ने इस संबंध में दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए समय मांगा, जिसे कोर्ट ने मंजूर किया।
सुनवाई के दौरान यह मामला भी सामने आया कि सागर कलेक्टर कार्यालय परिसर में लगभग 1000 पेड़ काटे गए। कोर्ट ने इस पर बेहद सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि पेड़ों की कटाई की परमिशन देने वाले अधिकारी प्रदूषित प्रदेशों में कुछ दिन रहकर देखें। आप खुशकिस्मत हैं कि मप्र की हरियाली और स्वच्छ हवा आपको मिल रही है। कुछ दिन प्रदूषण वाले राज्यों में रहकर देखें, तब शायद पेड़ों की कीमत समझ आएगी। कोर्ट ने सागर कलेक्टर को नोटिस जारी कर पूछा है कि किसकी अनुमति पर पेड़ काटे गए और कुल कितने पेड़ हटाए गए।
कोर्ट ने कहा कि मप्र में निजी जमीनों पर भी बिना अनुमति पेड़ काटे जा रहे हैं। कोर्ट ने प्रतिवादियों से पूछा-क्या किसी को अपने घर में लगे बरगद के 50-60 साल पुराने पेड़ को भी काटने की छूट है। इसके बाद कोर्ट ने सभी विभागों से विस्तृत एफिडेविट मांगा है, जिसमें अब तक कितने पेड़ काटे गए, कितने पेड़ रीलोकेट किए गए और कितने पेड़ बचे हैं इसकी जानकारी देनी होगी। ट्रांसप्लांट किए गए पेड़ों की उम्र और प्रजाति इन सभी विवरणों को शामिल करना होगा। कोर्ट ने शपथ पत्र जमा करने के लिए सभी प्रतिवादियों को दो सप्ताह का समय दिया है।
इसके साथ ही कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि पूरे मध्य प्रदेश में किसी भी पेड़ की कटाई छटाई या ट्रांसप्लांट पर पूरी तरह से रोक लगाई जाती है। पेड़ों की कटाई छटाई के लिए एनजीटी द्वारा गठित की गई कमेटी या ट्री आफिसर से अनुमति लेने के बाद ही कुछ किया जा सकेगा। इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी। हाई कोर्ट के कड़े संदेश से साफ है पेड़ों की कटाई रोकिए अन्यथा ग्रीन कवर और पर्यावरण को अपूर्णीय क्षति होगी।