जबलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। लंबे इंतजार के बाद आठ अगस्त से मूंग और उड़द का उपार्जन शुरू हो गया। जिले में उपार्जन के लिए कुल 18 केंद्र बनाए गए हैं। जहां तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। पहले दिन कहीं से भी उपार्जन की जानकारी तो नहीं मिली अलबत्ता एपज बेचने के लिए इंतजार कर रहे किसानों की समस्याएं जरूर सामने आ गईं।

समर्थन मूल्य पर मूंग और उड़द की खरीद को लेकर करीब डेढ़ महीने से छाई धुंध समाप्त हो गई। सरकार की ओर से आठ अगस्त से मूंग और उड़द का उपार्जन शुरू हो गया। पहले दिन कहीं से भी उपज बेचे जाने की सूचना नहीं मिली। इधर, उपार्जन से जुड़े अफसरों ने केंद्रों पर तैयारी पूरी कर लिए जाने की बात कही है। उपार्जन की अंतिम तारीख 30 सितंबर तय की गई है।

कहां बनाए कितने केंद्र

प्रशासन की ओर से जिले में कुल 18 उपार्जन केंद्र बनाए गए हैं। सिहोरा, मझौली, पाटन, जबलपुर, और शहपुरा ब्लाक में तीन-तीन खरीदी केंद्र बनाए गए हैं। जबकि पनागर में दो और कुंडम में एक केंद्र बनाया गया है। इस वर्ष उपार्जन के लिए कुल 13 हजार 487 किसानों ने मूंग और उड़द के उपार्जन के लिए पंजीयन करवाया। इनमें से 12012 किसान मूंग तो 5140 उड़द की बिक्री से संबंधित हैं। शासन की ओर से मूंग का समर्थन मूल्य 7275 और उड़द का 6300 रुपये तय है। जबलपुर जिले में इस साल मूंग का रकबा 61000 और उड़द का 60000 हेक्टेयर रहा।

केंद्र दूर होने से परेशानी

चरगवां से कलेक्ट्रेट पहुंचे करीब आधा सैकड़ा किसानों ने केंद्र दूर बनाए जाने की समस्या को लेकर अफसरों से मुलाकात की। इन किसानों का कहना रहा कि उनके पास उपज बेचने के लिए मैसेज तो आ रहे हैं, लेकिन उनका उपार्जन केंद्र चरगवां से बहुत दूर शहपुरा में बना दिया गया है। वहां तक उपज का परिवहन न केवल कठिन बल्कि जोखिम भरा है। बारिश का मौसम है, अगर खरीदी से पहले ही पानी गिरने लगे तो किसानों का अनाज खराब हो जा सकता है। कलेक्टर कार्यालय अपनी समस्या लेकर पहुंचे पवन जैन, अजय सिंह, जगदीश पटैल, रेवाराम, रघुवीर सिंह, संतोष सिंह, राहुल पटैल, चिराग पटैल, संतोष पटैल आदि ने मांग की है कि चरगवां में भी एक उपार्जन केंद्र बनाया जाए।

इनका कहना-

जिले में 18 उपार्जन केंद्र बनाए गए हैं। प्रत्येक केंद्र पर करीब एक हजार किसानों से खरीदी का इंतजाम है। कुल पंजीयनों की संख्या करीब साढ़े 13 हजार है। उपार्जन प्रक्रिया 30 सितंबर तक चलेगी।

-रोहित सिंह बघेल, डीएमओ

Posted By: Jitendra Richhariya

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