
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर : अपर सत्र न्यायाधीश राजेश कुमार तिवारी की अदालत ने अपनी टिप्पणी में साफ किया कि सिर्फ क्रूर या अपमानजनक व्यवहार को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाला कार्य नहीं माना जा सकता। इस सिलसिले में हाई कोर्ट का न्यायदृष्टांत मार्गदर्शी है, जिसमें महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए इस संबंध में व्यवस्था दी गई है। इस आधार पर आत्महत्या करने वाली पूनम चढार के पति गिरवर चढार सहित अन्य स्वजन राजकुमार बाई व विनोद कुमार चढार को आत्महत्या दुष्प्रेरण के प्रकरण में दोषमुक्त किया जाता है।
आरोपितों की ओर से अधिवक्ता राजेश यादव, ममता यादव व अरुण यादव ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि पूनम चढार का विवाह आरेापित गिरवर चढार के साथ हिंदू रीति-रिवाज से हुआ था। 29 दिसंबर, 2017 को उसने जहरीली वस्तु खाकर आत्महत्या कर ली। जिसके बाद मायके पक्ष ने पुलिस में आत्महत्या दुष्प्रेरण की शिकायत कर दी। क्रूरतापूर्ण व्यवहार व अपमान का आरोप लगाया। तर्क दिया गया कि इसी वजह से आत्महत्या की गई है।
दरअसल, शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना के आरोप में दम नहीं है। पति-पत्नी के बीच कभी-कभार कहा-सुनी सामान्य सी बात है, जिसे प्रताड़ना निरूपित करना अनुचित है। सास-ससुर व देवर आदि से भी कहा-सुनी हो जाया करती है। इसका यह आशय नहीं कि चूहा मार दवा खाकर कीमती जीवन समाप्त कर लिया जाए।
एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मृत्यु से पूर्व पूनम का अपने ससुराल में किसी से विवाद हुआ हो, इस सिलसिले में अभियोजन साक्षी ने किसी तरह की जानकारी न होने का कथन रेखांकित कराया है। उसने घटनास्थल पर न होने की बात भी कही है। ऐसे में यह आरोप लगाना कि पति गिरवर ने पूनम से कहा कि असल बाप की है तो घर में रखी दवाई पी लेना और मर जाना।