
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ के समक्ष गुरुवार को प्रदेश में प्रमोशन (MP Promotion) में आरक्षण को लेकर बने नियम की वैधानिकता को चुनौती देने के मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के विपरीत नियम बनाए हैं, इसलिए वे चुनौती योग्य हैं।
हाई कोर्ट को अवगत कराया गया कि सुप्रीम कोर्ट के एम नागराज और जरनैल सिंह के मामलों में जो निर्देश दिए हैं उनका पालन नहीं किया गया है। सरकार ने आरक्षण लागू करने से पहले यह नहीं देखा कि कौन से वर्ग अभी वाकई पिछड़े हैं और उनका वर्तमान में कितना प्रतिनिधित्व है।
बहस के दौरान यह दलील भी दी गई कि सुप्रीम कोर्ट ने उक्त प्रकरणों में क्रीमी लेयर का मुद्दा भी स्पष्ट किया है। जब तक पिछड़ा वर्ग से क्रीमी लेयर को अलग नहीं किया जाता, तब तक यह तय नहीं किया जा सकता कि उन्हें कितना आरक्षण मिलना चाहिए। यदि किसी पिछड़े वर्ग का व्यक्ति आईएएस या आईपीएस बनता है, तो उसके बच्चे सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े नहीं माने जाएंगे। ऐसे में उन्हें आरक्षण का लाभ देना बाकी उम्मीदवारों के साथ भेदभाव होगा। अभी इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से पक्ष रखा जा रहा है। कोर्ट ने अगली सुनवाई 20 नवंबर को निर्धारित की है। याचिकाकर्ताओं की बहस पूरी होने के बाद सरकार अपना पक्ष रखेगी।
राजधानी भोपाल निवासी डॉ. स्वाति तिवारी व अन्य की ओर से दायर याचिकाओं में मध्यप्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम 2025 को चुनौती दी गई है। दलील दी गई कि वर्ष 2002 के नियमों को हाईकोर्ट के द्वारा आरबी राय के केस में समाप्त किया जा चुका है। इसके विरुद्ध मप्र शासन ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी लंबित है, इसके बावजूद मप्र शासन ने महज नाम मात्र का शाब्दिक परिवर्तन कर जस के तस नियम बना दिए, वहीं मामले में अजाक्स संघ सहित आरक्षित वर्ग की ओर से अनेक अधिकारियों व कर्मचारियों ने इस मामले में हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की हैं।