सुरेंद्र दुबे, जबलपुर,नईदुनिया प्रतिनिधि। अब देश के सभी जिलों में स्थित जिला उपभोक्ता आयोगों में सेवा या उत्पाद में कमी व अनुचित व्यापार प्रथा के विरुद्ध दायर होने वाले परिवादों में 50 लाख रुपये क्षतिपूर्ति राशि तक के दावे होने लगे हैं। ऐसा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में संशोधन के क्रियान्वित होने के बाद से होने लगा है। इससे पूर्व दावे की अधिकतम सीमा महज 20 लाख रुपये थी, जिसमें अब 30 लाख के इजाफ के साथ सीमा 50 लाख रुपये कर दी गई है।
यही नहीं यदि कोई परिवादी जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश से संतुष्ट नहीं है, तो वह वहीं पुनराविलोकन परिवाद भी दायर कर सकता है। पहले यह सुविधा नहीं थी। इसी तरह मुकदमे का खर्च भी पहले महज दो से पांच सौ रुपये ही मिलता था, जो अब दो हजार से पांच हजार तक हो गया है। जबलपुर में एक नहीं बल्कि दो जिला उपभोक्ता आयोग स्थापित हैं। इनमें परिवादियों की ओर से पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं ने बताया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में संशोधन के बाद से उपभोक्ता अपने अधिकार को लेकर पहले की अपेक्षा अधिक जागरूक होकर परिवाद दायर करने लगे हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि कानूनी लड़ाई में लगने वाले समय, श्रम व धन के अनुरूप मूलधन के अलावा मानसिक क्षतिपूर्ति व वाद व्यय राशि मिलने की आशा बलवती हो गई है।
संशोधित प्रविधान के अनुसार चिकित्सकीय लापरवाही व वर्तमान नियमों के उल्लंघन के मामले भी परिवाद का विषय बनने लगे हैं। लिहाजा, इस प्रकृति के परिवाद भी काफी संख्या में दायर होने लगे हैं।
हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट जाने का भी रास्ता खुला : उपभोक्ता मामलों के जानकार अधिवक्ताओं ने अवगत कराया कि जिला उपभोक्ता आयोग से पक्ष में आदेश न आने पर परिवादी राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील दायर करते हैं। वैसे इसकी नौबत काफी कम आती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर अपील उपभोक्ताओं के साथ छल करने वाले उन प्रतिवादियों की ओर से दायर होती हैं, जिनके विरुद्ध आदेश जारी हो चुका होता है। मध्य प्रदेश का राज्य उपभोक्ता आयोग राजधानी भोपाल अंतर्गत अरेरा हिल्स में स्थित है। राज्य उपभोक्ता आयोग के आदेश को राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, नई दिल्ली में अपील के जरिये चुनौती दी जाती है। संशोधित प्रविधान का सबसे बड़ा लाभ यह है कि अब राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग से आदेश से संतुष्ट न होने पर हाई कोर्ट या सीधे सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की जा सकती है।
केस नंबर : एक जबलपुर से जुड़े एक मामले में उपभोक्ता से महज दो रुपये के कैरीबैग के लिए पांच रुपये ले लिए गए थे। तीन रुपये अधिक लिए जाने के विरुद्ध परिवाद दायर किया गया। जिसकी सुनवाई के बाद उपभोक्ता के हक में 10 हजार रुपये क्षतिपूर्ति राशि का आदेश पारित हुआ।
केस नंबर : दो जबलपुर से जुड़े दूसरे मामले में फ्रूट केक के पैकेट में शाकाहारी व मांसाहारी का हरा-लाल प्रतीक चिन्ह नदारद था। इस वजह से शुद्ध शाकाहारी उपभोक्ता ने अंडे वाला केक खरीदकर खा लिया। उत्पाद महज 20 रुपये का था, किंतु उपभोक्ता अदालत ने सुनवाई के बाद 750 रुपये क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया था।
इनका कहना है
पिछले 25 वर्ष से उपभोक्ता मामलों की पैरवी कर रहा हूं। इस अवधि में सुई व कैरीबैग, मोबाइल से लेकर रेलगाड़ी व हवाई यात्रा तक के सिलसिले में सेवा व उत्पाद में कमी व अनुचित व्यापार प्रथा के अवैधानिक रवैये को चुनौती देकर परिवादियों को जीत दिला चुका हूं। भोपाल से लेकर दिल्ली तक अपीलों में बहस कर दूसरे पक्ष को हरा चुका हूं। किंतु आजकल हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक उपभोक्ताओं की ओर से पैरवी करने जाने लगा हूं। उपभोक्ता अदालतें प्रत्यक्ष व अनजाने में हुई लापरवाही में विभेद के आधार पर मानिसक क्षतिपूर्ति सहित अन्य दावा राशि का निर्धारण करती हैं। -अरुण कुमार जैन, उपभोक्ता मामलों के वकील
Posted By: Rajnish Bajpai
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