जबलपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि एडीजे के सिर्फ 10 प्रतिशत पद ही विभागीय परीक्षा के माध्यम से भरे जाएं। न्यायमूर्ति एमआर शाह व न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की युगलपीठ ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया कि आगामी नियुक्तियों में पूर्व में भरे गए पदों में समायोजित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने मप्र हाई कोर्ट द्वारा 740 एडीजे के पदों पर की गई नियुक्तियों को आल इंडिया जजेस एसोसिएशन बनाम भारत संघ मे पारित निर्णय के विपरीत पाया। ओबीसी एडवोकेटस वेलफेयर एसोसिएशन के प्रतिनिधि पूर्व सेवानिवृत न्यायधीश राजेंद्र श्रीवास ने हाई कोर्ट द्वारा की गई नियुक्तियों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने प्रथमदृष्ट्या पाया कि हाई कोर्ट ने एडीजे के पदों पर विभागीय परीक्षा द्वारा निर्धारित कोटा 10 प्रतिशत से अधिक नियुक्तियां की हैं। शीर्ष कोर्ट ने पाया कि संवैधानिक पीठ के फैसले में दी गई गाइडलाइन के अनुरूप मप्र हाई कोर्ट ने भर्ती नियम में संशोधन भी नहीं किया है।
क्या थे पूर्व दिशा-निर्देश :
वर्ष 2010 में आल इंडिया जजेस एसोसिएशन के प्रकरण मे संवैधानिक पीठ ने दिशा-निर्देश दिए थे कि एडीजे के 25 प्रतिशत पद अधिवक्ताओं से, 65 प्रतिशत प्रमोशन से तथा 10 प्रतिशत पद विभागीय परीक्षा से ही भरे जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने मप्र हाई कोर्ट को कहा कि भर्ती नियम में संशोधन करें और पूर्व में की गई नियुक्तयों को आगामी भर्ती में समायोजित करें।
हो रही सराहना :
ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन से संबंधित मप्र हाई कोर्ट में राज्य शासन की ओर से पक्ष रखने राज्यपाल द्वारा अधिवक्ता विशेष अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश की सराहना की है। इसके दूरगामी परिणाम होने की आशा व्यक्त की है। इस निर्देश के बाद से ही अधिवक्ताओं में भी खुशी का माहौल है और वे भी इस निर्णय की सराहना कर रहे हैं।
Posted By: Jitendra Richhariya