High Court : जबलपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। हाई कोर्ट ने कुटुम्ब न्यायालय के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसके तहत तलाक लिए बिना दूसरी शादी फिर अलग होकर भरण-पोषण राशि का दावा कर राहत हासिल कर ली गई थी। न्यायमूर्ति आरके वर्मा की एकलपीठ ने कुटुम्ब न्यायालय के आदेश को विधिसम्मत न पाकर उक्त आदेश पारित किया। दरअसल, पहले पति को कानूनी रूप से तलाक बिना दूसरा विवाह वैध नहीं होता। लिहाजा, कुटुम्ब न्यायालय का आदेश सही नहीं था।

पत्‍नी या पति का दर्जा नहीं...

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया कि किसी के साथ विवाह की रस्में करने से जरूरी नहीं कि पत्नी या पति का दर्जा मिल जाए। हालांकि, महिला को सक्षम अदालत में अलग से दावा करने के लिए स्‍वतंत्र है। याचिकाकर्ता भगवान दास ने हाई कोर्ट याचिका में याचिका के जरिए कुटुम्ब न्यायालय, सिंगरौली के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पत्नी को 10,000 रुपये मासिक भरह पोषण राशि देने का आदेश दिया था। अधिवक्ता जेएल सोनी ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने 29 मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत आयोजित सामूहिक विवाह कार्यक्रम में विवाह किया था। 11 अगस्त, 2017 को पत्नी पनपती शाह उसे छोड़कर चली गई थी।

शादी के पांच-छह साल बाद छोड़ा, तलाक नहीं दिया

पनपती की पहली शादी सुशील कुमार गुप्ता से 2006 में हुई थी। शादी के पांच-छह साल बाद उसे छोड़ दिया किंतु कानूनी रूप से तलाक नहीं दिया। चूंकि बिना तलाक के दूसरी शादी कानूनन वैध नहीं होती अतः वह भरण-पोषण भत्ते की हकदार नहीं है। बहस के दौरान पत्नी की ओर से दलील दी गई परस्पर सहमति से तलाक के बाद उसने अपने पहले पति को छोड़ दिया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि केवल अदालत को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक देने का अधिकार है। चूंकि महिला ने अपने पहले पति से तलाक नहीं लिया था, इसलिए वह अपने दूसरे पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है क्योंकि उनका विवाह अवैध है।

Posted By: Dheeraj Bajpaih

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