झाबुआ(नईदुनिया प्रतिनिधि)। ग्राम स्वराज की परिकल्पना को मैदान में उतारने के लिए त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव दो चरणों में खत्म हो चुके हैं। गांव की कमान गांव के प्रतिनिधि के हाथों में होना आदर्श स्थिति है, लेकिन दूसरा पहलू यह है कि इससे पैदा होने वाली राजनीतिक स्पर्धा रंजिश के बीज गांव-गांव में बो चुकी है । पिछले पंचायत चुनाव के बाद करीब चार हजार शिकायतें कई दिनों तक मिलती रहीं। इस बार अभी शुरुआत दौर में ही दो दर्जन विवाद के मामले सामने आ चुके हैं । खुद पुलिस अधिकारी भी मान रहे हैं कि अब विवाद बढ़ेंगे, ऐसे में इन पर अंकुश लगाना ही बड़ी चुनौती हो गया है।
पंचायत चुनाव में 8063 उम्मीदवार ने अलग-अलग पद के लिए मैदान में उतर कर ताल ठोकी। ब.ढत सिर्फ तीन हजार के हिस्से में आई, शेष पिछ.ड गए । कड़ी टक्कर होने के बाद भारी खर्च करने के बाद भी कई उम्मीदवार पिछ.ड गए। ये ब.ढत वाले प्रत्याशी घर विवाद करने पहुंच रहे हैं। वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव के बाद बहुत दिनों तक शिकायतें चलती रहीं । करीब चार हजार शिकायतें की गई थीं ।
इस बार ऐसी रही स्पर्धा
- 373 को ही सरपंच पद मिलना था
- 1879 सरपंच पद पाने के लिए ल.डे
- 113 जनपद सदस्य चुनना थे
- 667 ने मैदान में ताल ठोकी
पंच पद तक केलिए कशमकश
- 5439 पंच पद पाने के लिए उतरे
-14 जिला पंचायत वार्ड थे
-78 उम्मीदवार मैदान में मौजूद रहे
- 24 विवाद चुनाव के दौरान
केवल इतना आदर्श रहा
- 02 सरपंच ही निर्विरोध
- 01 जनपद सदस्य ही निर्विरोध
- 3468 पंच निर्विरोध
- 01 पंच वार्ड में कोई नहीं आया
पिछले चुनावों के बाद
- भोयरा में पंचायत चुनाव निपटने के बाद गंभीर विवाद हुआ, जो कई वर्षों तक चला।
- कोटड़ा में तीन-चार साल तक दो पक्षों के बीच खूनी संघर्ष हुआ । रंजिश मूल रूप से चुनाव को लेकर शुरू हुई थी।
- टिमरवानी व पिपलीपा.डा में चुनावी विवाद लंबे समय बाद सुलझा।
- उमरकोट में एक युवक के हत्या की मूल वजह राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई ही मानी गई ।
समझाइश देंगे
पुलिस अधीक्षक अरविंद तिवारी का कहना है कि चुनावी रंजिश लंबे समय तक चलती है और उनमें विवाद होते हैं। जिले में सभी को अलर्ट रहने के निर्देश दिए हैं। शिकायत मिलते ही मौके पर दल भेंजेगे। जीतने व हारने वालों को यह समझाया जाएगा कि गांव के विकास के लिए वे मैदान में उतरे थे। परिणाम आने के बाद अब गांव की बेहतरी के लिए कार्य करें।
Posted By:
- Font Size
- Close