
नईदुनिया प्रतिनिधि, सागर। केंद्र सरकार द्वारा नए श्रम कानून लागू करने के बाद सागर स्थित वर्षों पुराना श्रम न्यायालय बंद कर दिया गया है। इसके बाद अब जिले सहित पूरे संभाग के श्रमिकों को अपने मामलों की सुनवाई के लिए भोपाल या जबलपुर जाना पड़ेगा। नई व्यवस्था लागू होने से न केवल नए मामलों की फाइलिंग बंद हो गई है, बल्कि पुराने मामलों की सुनवाई भी रोक दी गई है। इससे श्रमिकों और अधिवक्ताओं में नाराज़गी है।
सागर में यह न्यायालय करीब 50 साल से संचालित था और वर्तमान में सैकड़ों प्रकरण विचाराधीन हैं। 21 नवंबर से यहां नए केस लेना पूरी तरह बंद कर दिया गया है। न्यायालय बंद होने के बाद जब तक नया न्यायाधिकरण गठित नहीं हो जाता, तब तक सभी मामले लंबित रहेंगे।
केंद्र सरकार ने 29 श्रम कानूनों को खत्म कर उन्हें चार नए लेबर कोड में समाहित किया है। नए नियमों के अनुसार श्रम संबंधी सभी प्रकरण अब श्रम न्यायालय के बजाय न्यायाधिकरण में सुने जाएंगे। हालांकि प्रस्तावित न्यायाधिकरण का गठन अभी नहीं हुआ है और न ही मध्यप्रदेश के नियम अंतिम रूप ले पाए हैं।
नई व्यवस्था में कई न्यायिक प्रक्रियाएँ श्रम विभाग संभालेगा, लेकिन विभाग में कर्मचारियों की कमी और न्यायिक अनुभव न होने से स्थिति और जटिल हो सकती है। बड़ी समस्या यह है कि फिलहाल पीड़ित पक्षकारों को यह भी स्पष्ट नहीं है कि उन्हें किस कार्यालय में कार्यवाही करवानी है।
श्रम न्यायालय बंद किए जाने पर सोमवार को लेबर बार एसोसिएशन की बैठक हुई। अधिवक्ताओं ने कहा कि इससे बुंदेलखंड क्षेत्र के श्रमिकों को सरल और सुलभ न्याय से दूरी का सामना करना पड़ेगा। रीवा में विंध्य क्षेत्र का न्यायाधिकरण बनाया जा रहा है, ऐसे में अधिवक्ताओं ने मांग की कि बुंदेलखंड के लिए सागर में ही न्यायाधिकरण का गठन किया जाए।
एसोसिएशन ने निर्णय लिया कि इस संबंध में केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रियों, सांसद–विधायकों और जनप्रतिनिधियों से मुलाकात कर आग्रह किया जाएगा।
लेबर बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने सांसद लता वानखेड़े को ज्ञापन सौंपकर सागर में न्यायाधिकरण स्थापित करने की मांग की। ज्ञापन में बताया गया कि सागर संभागीय मुख्यालय होने के कारण यहां प्रस्तावित अधिकरण गठित किया जाना चाहिए तथा उसके गठन तक श्रम न्यायालय में सुनवाई जारी रखी।