सतना, नईदुनिया प्रतिनिधि। सपने देखना और फिर उसे साकार करना एक बड़ा मुकाम होता है। यह उपलब्धि निश्चित ही एक मिसाल के रूप में सामने आती है। कुछ ऐसा ही सतना के अमरपाटन के रहने वाले बेहद गरीब परिवार के शिवकांत कुशवाहा ने कर दिखाया है। उन्होंने ठेला लगाकर सब्जी बेचे और गर्मी के दिनों में लोगों को गन्ने का रस भी पिलाया। इस दौरान उन्होंने लोगों की ओर से किए गए अच्छे-बुरे व्यवहार का कड़वा अनुभव भी किया। पर उन्होंने अपनी मेहनत से एक मुकाम हासिल कर लिया है और अब उन्हें न्याय के मंदिर में बैठकर लोगों के साथ न्याय करने का अधिकार होगा। शिवकांत मध्य प्रदेश सिविल जज की परीक्षा परिणाम में ओबीसी वर्ग में पूरे प्रदेश मे दूसरी रैंक हासिल कर सिविल जज बन गए हैं। लगातार मेहनत कर हार नहीं मानने वाले शिवकांत ने पांचवें दौर में यह परीक्षा निकाली है। इनके हौसलों और कड़ी मेहनत की लोग अब सराहना कर रहे हैं। इसे अब एक मिसाल के तौर पर पेश कर रहे हैं।

एक वक्त का खाना जुटाना मुश्किल रहा

सतना स्थित अमरपाटन तहसील के बेहद गरीब परिवार के बेटे शिवकांत कुशवाहा के लिए सबकुछ आसान नहीं रहा है। उन्होंने बताया कि हालात ऐसे रहे कि एक वक्त का खाना जुटा पाना मुश्किल होता था। छोटे से कच्चे घर मां ने सपना देखा था कि उनका बेटा जज बने। इसी सपने को पूरा करने के लिए मां ने बेटे को वकालत की पढ़ाई कराने के लिए जी जान लगा दिया। सब्जी, गन्ने के रस का ठेला तक लगाना पड़ा और इसके बाद आधा पेट खाना खाकर रातभर पढ़ाई करते थे। उन्होंने बताया कि एक बार घर में राशन नहीं था। माता-पिता मजदूरी कर वापस आए और उन पैसों से वे राशन लेने गए तो रास्ते में बारिश होने लगी और वे फिसलकर गड्ढे में गिर गए और बेहोश हो गए। इसके बाद उनके घर पर उनकी तलाश शुरू हो गई। लोग परेशान होने लगे, तभी मां यहां-वहां ढूंढते हुए उन तक पहुंच गई और उन्हें घर लाया। इसके बाद उन्हें मां की डांट सहनी पड़ी। उस दौरान मां ने यह कहा कि पढ़ लिख लो और जिंदगी में कुछ बन जाओ, तब ही इस गरीबी से मुक्ति मिल सकेगी। उन्होंने बताया कि मां की यह बात उन्हें लग गई और तब से वे दिन-रात मेहनत करने लगे।

बेटे के सपने को साकार करते मां भी गुजर गईं

15 जनवरी 1983 को जन्मे शिवकांत के पिता कुंजीलाल और मां मजदूरी करते थे। शिवकांत ने बताया कि उनके चार भाई बहन हैं, जिनमें वे दूसरे नंबर के हैं। बेटे के जज बनने का मां का सपना जरूर सच हो गया, लेकिन यह देखने मां पास नहीं रही। उनका कैंसर की वजह से नौ साल पहले ही निधन हो गया, लेकिन माता के सपने को साकार कर शिवकांत अब ठेले में बैठकर नहीं जज की कुर्सी में बैठकर गरीबों को न्याय देंगे। इसके लिए शिवकांत ने एक बार नहीं पांच बार परीक्षा दी और अंत में मध्य प्रदेश सिविल जज की परीक्षा परिणाम में ओबीसी वर्ग में 442 में से 229 अंक अर्जित कर पूरे प्रदेश मे दूसरी रैंक हासिल कर सिविल जज बन गए हैं।

Posted By: Mukesh Vishwakarma

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