आकाश माथुर, सीहोर।

पंकज सुबीर का नाम देश के अग्रणी कथाकारों की सूची में शामिल है। अभी कुछ दिनों पहले ही उनका नाम रूस के पूश्किन अवार्ड के लिए घोषित किया गया। पंकज सुबीर इंटरनेट पर गजल गुरू के नाम से प्रसिद्ध हैं, क्योंकि वे गजल के व्याकरण पर अपना ब्लाग चलाते हैं। वे सीहोर जैसे छोटे शहर में रहकर साहित्य सेवा करने के साथ ही देश के साथ विदेश में भी हिंदी का मान बढ़ाने का काम कर रहे हैं। उनके प्रयासों से हिंदी का मान बढ़ रहा है। साथ ही नवोदित साहित्यकारों को भी प्रेरणा मिल रही है। वे कहते हैं कि जब उन्हें महुआ घटवारिन और अन्य कहानियों के लिए वर्ष 2012 का कथा यूके अंतरराष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान मिला तो उनके लिए वहां मौजूद तमाम अंग्रेजों ने खड़े होकर ताली बजाई। तब उन्हें हिंदी पर गर्व हुआ और हिंदी के लिए मिले सम्मान से हिंदुस्तान को जो सम्मान मिला उससे खुशी मिली।

पंकज सुबीर मूल रूप से मानवीय संवेदना के पक्ष में खड़े नजर आने वाले लेखक हैं। उनके अब तक सात कहानी संग्रह, तीन उपन्यास, दो गल संग्रह और संपादन की चार पुस्तकों सहित विविध विधाओं की कुल 17 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कई छात्र उनके साहित्य पर पीएचडी भी कर रहे हैं। इसके साथ ही वे इंटरनेट पर गजल के व्याकरण को लेकर विशेष कार्य अपने ब्लाग के माध्यम से कर रहे हैं। जहा पर गजल का व्याकरण सीखने वालों को उसकी जानकारी उपलब्ध करवाते हैं। इंटरनेट पर हिंदी के प्रचार प्रसार को लेकर विशेष रूप से कार्यरत हैं। इसके साथ ही वे बीते कई सालों से हिंदी के लेखकों को सम्मानित करने शिवना पुरस्कार लेखकों को देते हैं। जो देश के साथ ही देश के बाहर हिंदी की सेवा करने वाले साहित्यकारों को दिया जाता है।

पत्रकार से साहित्यकार तक का सफर किया तय

पंकज सुबीर की मानें तो उनके पिता उन्हें एक डाक्टर बनता देखना चाहते थे, जिस वजह से पंकज ने 12वी पास करने के बाद दो बार पीएमटी का इम्तिहान भी दिया जिसमें सफलता न मिलने पर उन्होंने बीएससी और फिर बाद में भोपाल के बरकतल्लाह विश्वविद्यालय से एमएससी रसायन शास्त्र में दाखिला लिया और यहीं से पंकज का सफर शुरु हुआ सफर लेखक बनने का। पंकज बताते हैं कि एमएससी की पढ़ाई के दौरान ही मैंने कहानियां और कविताएं लिखना शुरू किया उनमें से कुछ कहानियां जब उन्होंने अख़बार वालों को भेजीं तो उन्हें भी पंकज की लिखी कहानियां खूब पसंद आईं। जब पंकज सुबीर की पढ़ाई भी ख़त्म हो चुकी थी और लगभग हर हफ्ते उनकी एक कहानी अख़बार में छपने भी लगी थी। लिखने का शौक रखने वाले पंकज द्वारा लिखे लेख जब अखबारों में छपने लगे तो उनके कुछ साथी जो उन दिनों अखबारों में काम करते थे, उन्होंने पंकज को पत्रकारिता करने की सलाह दी। पंकज को भी सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक था तो वे पत्रकार बन गए। पंकज कहते हैं कि पत्रकारिता में पहले सब ठीक था लेकिन फिर धीरे-धीरे उसके हाल भी बुरे होने लग गए। जिसका नतीजा बहुत लंबे समय तक पत्रकारिता पंकज को या कहें पंकज पत्रकारिता को रास नहीं आए। अब तक साल 2009 आ चुका था और पंकज कई उपन्यास और किताबें लिख चुके थे। पंकज का लेखक बनने का फैसला खूब रंग लाया जब उन्हें अपनी एक कहानी महुआ घटवारिन के लिए हिंदी के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय पुरुस्कार 'इंदु शर्मा' से लंदन के हाउस आफ कमेंस में सम्मानित किया गया। पंकज कहते हैं कि इस सम्मान के बाद मैंने पूरी तरह से पत्रकारिता को छोड़ दिया था और एक फुल टाइम राइटर बन गया था।

इन सम्मानों से किया गया सुबीर को सम्मानित

कहानी संग्रह महुआ घटवारिन और अन्य कहानियां के लिए उहें वर्ष 2012 का कथा यूके अंतरराष्ट्रीय इन्दू शर्मा कथा सम्मान, 10 अक्टूबर 2013 को लंदन के हाउस आफ कामंस में सम्मान प्रदान किया गया। उपन्यास ये वो सहर तो नहीं को भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा वर्ष 2010 का नव लेखन पुरस्कार, उपन्यास ये वो सहर तो नहीं को मप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा वागीश्वरी पुरस्कार, समग्र लेखन के लिए वर्ष 2014 में वनमाली कथा सम्मान अमेरिका तथा कैनेडा में हिन्दी लेखन के लिए विशेष रूप से सम्मानित किया गया। इस तरह के तमाम बड़े सम्मानों से पंकज सुबीर को सम्मानित किया जा चुका है। वे लगातार हिंदी साहित्य के विस्तार के लिए काम कर रहे हैं। वे नवोदित लेखकों को बढ़ावा देने के साथ ही लेखकों को प्रोत्साहित करने हर साल सम्मान समारोह भी आयोजित करते हैं। साथ ही उनके द्वारा लिखी गई कई कहानियों तथा व्यंग्य लेखों का तेलगू, पंजाबी, उर्दू, राजस्थानी, अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।

Posted By: Nai Dunia News Network

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