
नईदुनिया प्रतिनिधि, उज्जैन: धर्मनगरी उज्जैन के प्राचीन और पवित्र नीलगंगा सरोवर के किनारे दोबारा शुरू हुए अवैध पक्के निर्माण (दीवार आदि) पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने कड़ा रुख अपनाया है। शिकायत के बाद एनजीटी की ओर प्रतिवादियों को नोटिस भेजा गया है।
आवेदकों की शिकायत और तस्वीरों की पुष्टि के बाद, एनजीटी ने सुनवाई में सभी प्रतिवादियों को न केवल नोटिस जारी किए, बल्कि उन्हें 25 फरवरी 2026 को होने वाली अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले अपना विस्तृत जवाब अनिवार्य रूप से दाखिल करने का निर्देश दिया। यह कार्रवाई उन स्थानीय भू-माफियाओं और सरकारी तंत्र की मिलीभगत पर बड़ा सवाल खड़ा करती है, जिन्होंने 17 अगस्त 2018 के सख्त आदेशों को भी दरकिनार कर दिया।
यह मामला पहली बार 2018 में तब सुर्खियों में आया था, जब आवेदक कुलदीप सिंह परिहार ने निर्माण को चुनौती दी थी। तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट ने प्रमाणित किया था कि निर्माण गतिविधियां तालाब की पारिस्थितिक संवेदनशील सीमा का उल्लंघन करते हुए जल क्षेत्र से मात्र 9 मीटर की दूरी पर थीं।
उस समय, एनजीटी ने इन निर्माणों को ‘लीड इन लीज शर्तों का उल्लंघन’ मानते हुए अवैध घोषित किया था। इसके बाद, प्रशासन ने व्यापक कार्रवाई करते हुए 26 निर्माणों को ध्वस्त किया और अवैध कब्जों को मुक्त कराया था। एनजीटी ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि भविष्य में इस क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण की अनुमति न दी जाए।
आवेदक परिहार ने वर्तमान शिकायत में आरोप लगाया है कि जिन निर्माण कार्यों पर 2018 में रोक लगाई गई थी, वे पिछले कुछ महीनों में फिर से शुरू हो गए हैं। तस्वीरों से पता चलता है कि पहले ध्वस्त किए गए स्थानों पर ही निर्माण गतिविधि फिर से तेज़ी से चल रही है। यह न केवल एनजीटी के आदेशों की अवमानना है, बल्कि उस संरक्षित जल निकाय के अस्तित्व के लिए भी सीधा खतरा है, जिसका पौराणिक महत्व है।
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि सरोवर के आस-पास का निर्माण भूजल पुनर्भरण चक्र (ग्राउंडवाटर रिचार्ज सायकल) को बाधित करेगा, जिससे भविष्य में शहर को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है। एनजीटी ने इस बार सभी संबंधित सरकारी विभागों जिनमें नगर निगम, जिला प्रशासन और टाउन एंड कंट्री प्लानिंग शामिल हैं को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा है। अगली सुनवाई पर सबकी निगाहें टिकी हैं, जहां एनजीटी अदालत की अवमानना के आधार पर दोषियों पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति जुर्माना लगाने के साथ-साथ कठोर कानूनी कार्रवाई भी कर सकता है
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नीलगंगा सरोवर उज्जैन का ऐतिहासिक और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है। यह तालाब न केवल शहर की जलस्थल व्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन का भी केंद्र है। तालाब के संरक्षण से स्थानीय पारिस्थितिकी संतुलित रहती है और यह उज्जैन की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने में मदद करता है।