Ujjain News : उज्जैन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चेयरमैन डा. श्रीधर सोमनाथ ने कहा कि अंतरिक्ष अनुसंधान के मूल स्रोत संस्कृत के प्राचीन ग्रंथ ही हैं। संस्कृत साहित्य में ज्ञान-विज्ञान की अविरल धारा है, जो बहती चली आ रही है। आवश्यकता है उस ज्ञान और विज्ञान का उपयोग कर संस्कृत को विश्व में पुन: स्थापित करने की।

डा. सोमनाथ ने बतौर सारस्वत अतिथि महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन के चतुर्थ दीक्षा समारोह में बुधवार को विद्यार्थियों को संबोधित करते उक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि शून्य से अनंत (इनफिनिटी) तक का ज्ञान हमें संस्कृत से प्राप्त हुआ है। गूगल भी संस्कृत भाषा के महत्व को विज्ञान के क्षेत्र में स्पष्ट करता है। भारतीय ज्योतिष के मूल ग्रंथों में अंतरिक्ष अनुसंधान का आधार रहस्य छिपा है। संस्कृत मात्र एक भाषा नहीं, पूर्णतया विज्ञान है।

समारोह के बाद डा. सोमनाथ ने ‘नईदुनिया’ से बातचीत में कहा कि मिशन चंद्रयान-3 की लांचिंग इसी वर्ष जुलाई या अगस्त में होगी। तैयारी अंतिम चरण में है। यह यान चंद्रमा की सतह के बारे में जानने के लिए एक लैंडिंग माड्यूल और रोबोटिक रोवर लेकर उड़ान भरेगा। स्पेस से धरती पर विज्ञानियों की सही-सलामत वापसी के लिए परीक्षण भी चल रहा है। श्री महाकालेश्वर नाम से अंतरिक्ष में सेटेलाइट स्थापित किया जाएगा।

धर्म और विज्ञान के संबंध में उन्होंने कहा कि जहां विज्ञान की सीमा खत्म होती है, वहां अध्यात्म की शुरुआत होती है। अध्यात्म से ही धर्म का जन्म हुआ। उन्होंने कालिदास संस्कृत अकादमी में विद्यार्थियों से हुए संवाद में अपने स्कूली शिक्षा से लेकर इसरो चेयरमैन बनने तक का सफर संक्षिप्त में साझा किया। एक छात्र ने प्रश्न किया कि अंतरिक्ष यान बनाने में क्या नासा की तरह इसरो भी क्वालिटी मेंटेन करता है, मुस्कुराते हुए डा. सोमनाथ ने कहा कि करना ही पड़ेगा। कई परीक्षण करने के बाद ही सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजा जाता है। एक स्क्रू भी ढीला रह जाए तो परिणाम बहुत बुरा होता है।

Posted By: Hemant Kumar Upadhyay

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