अजय जैन, विदिशा। गृह मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा ने पिछले वर्ष जून माह में छतरपुर में खुले बोरवेल में एक बच्चे के गिरने के बाद घोषणा की थी कि अब प्रदेश में किसी ने बोरवेल खुला छोड़ा और उसमें बच्चा गिरा तो भूमि स्वामी के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज होगा। साथ ही, बच्चे को निकालने के लिए चलाए गए बचाव कार्य का पूरा खर्च भी उससे वसूला जाएगा।

इसके नौ माह बाद भी राज्य सरकार खुले बोरवेल पर रोक लगाने के लिए कोई नियम नहीं बना पाई है। इस अवधि में खुले बोरवेल में छह बच्चे गिर भी चुके हैं। इनमें से दो की मौत हो गई।

विदिशा जिले के ग्राम खेरखेड़ी में खेत में खुले पड़े बोरवेल में मंगलवार को सात वर्षीय लोकेश अहिरवार के गिरने की घटना भी लापरवाही का ही परिणाम है। इस गांव में किसान ने चार साल पहले बोरिंग करवाई और पानी नहीं निकलने पर इसे खुला छोड़ दिया। बोर में केसिंग पाइप तक नहीं डाले, जिसके कारण यह मौत का गड्ढा बना रहा।

तीन महीने पहले बैतूल में ऐसे ही बोरवेल में गिरकर बच्चे की मौत के बाद भी किसी भी जिले में खुले बोरवेलों को बंद कराने की पहल नहीं की। इस घटना के बाद विदिशा कलेक्टर उमाशंकर भार्गव ने भू-स्वामी के खिलाफ कार्रवाई करने की बात तो कही, लेकिन किन नियमों में कार्रवाई होगी, इसकी जानकारी नहीं दी।

भू-स्वामी से बचाव कार्य पर खर्च राशि वसूलने के सवाल पर उनका कहना था कि अभी इस तरह का कोई नियम नहीं है। दरअसल, खुले पड़े बोरवेल को बंद कराने संबंधी कोई कड़ा नियम नहीं होने के कारण ही किसान कुछ रुपये बचाने के लालच में बोरवेल खुला छोड़ देते हैं।

जलसंकट वाले क्षेत्रों में खुले रहते हैं बोरवेल

खेतों में बोरवेल खुला छोड़ने की लापरवाही सबसे अधिक जलसंकट वाले क्षेत्रों में बरती जाती है। एक बोरवेल संचालक नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि किसान आठ-दस हजार रुपये का खर्च बचाने बोरवेल के गड्ढे में केसिंग पाइप भी नहीं डलवाते हैं। पाइप डालकर ऊपर तक छोड़ देने पर बोरवेल दूर से दिखने लगता है। उसमें किसी के गिरने की आशंका नहीं रहती।

Posted By: Hemant Kumar Upadhyay

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