अजय जैन, विदिशा। विदिशा का ऐतिहासिक विजय मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में है। इसकी वजह है दिल्‍ली में बना देश का नया संसद भवन, जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को उद्घाटन करने वाले हैं। 1200 करोड़ रुपये की लागत से सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बने इस नवीन संसद भवन की डिजाइन काफी हद तक विदिशा के ऐतिहासिक विजय मंदिर से मिलती है। इस मंदिर को सूर्य मंदिर भी कहा जाता है।

विदिशा के इतिहासकार गोविंद देवलिया का कहना है कि हमारे लिए यह गौरव की बात है कि यहां के विजय मंदिर की प्रतिकृति दिल्ली के नए संसद भवन के लिए ली गई है और उसी आधार पर प्रोजेक्ट तैयार किया गया। लेकिन हम लोग चाहते हैं कि उद्घाटन के समय या बाद में विदिशा के इस स्थान का जिक्र जरूर किया जाना चाहिए। वे बताते हैं कि प्राचीन विजय सूर्य मंदिर के गेट पर निर्मित दो विशाल स्तंभ संसद भवन के प्रवेश द्वार से मेल खाते हैं। ड्रोन से लिए गए संसद भवन और विजय मंदिर के फोटो में यह समानता साफ दिखाई देती है।

यह है विजय मंदिर का इतिहास

विदिशा के इस विजय सूर्य मंदिर का निर्माण परमार काल के शासक राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री चालुक्य वंशी वाचस्पति ने 11वीं सदी में कराया था। मंदिर का निर्माण परमार शैली के अनुरूप भव्य विशाल पत्थरों पर अंकित परमारकालीन राजाओं की गाथाओं से किया गया। मंदिर डेढ़ सौ गज ऊंचा बताया जाता है। इतिहासकार बताते है कि मंदिर की भव्यता और विशालता मुगल शासकों को शुरू से ही खटकती रही और 17वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को 11 तोपों से उड़ाकर पूरी तरह लूट लिया और तोड़-फोड़ करते हुए ज्यादातर मूर्तियों को बर्बाद कर दिया। मंदिर के अवशेषों को दफन कर उसके ऊपर मस्जिद का निर्माण कराया गया। 1992 की खोदाई में मंदिर के अवशेष मिलने पर यह मामला प्रकाश में आया और गहरी खुदाई पर मंदिर रूपी एक भव्य इमारत सामने आई। उसके बाद पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने पूरी जगह को अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। फिलहाल इस मंदिर में साल भर ताला लगा रहता है।

वास्तुकला का नायब उदाहरण है विजय मंदिर

प्रख्यात पुरातत्वविद डा. नारायण व्यास कहते है कि विदिशा का विजय मंदिर भूमज शैली में बना हुआ है। इस मंदिर में तीन प्रवेश द्वार भी दिखाई देते हैं। यह मंदिर वास्तुकला का एक नायाब उदाहरण है। वही उज्जैन के महाराजा विक्रमादित्य शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डा. भगवतीलाल राजपुरोहित का कहना है कि आज के दौर में नए भारत को गढ़ने के प्रयास हो रहे है, जिसमें दो केंद्रबिंदु है, एक अयोध्या का राम मंदिर और दूसरा दिल्ली का नया संसद भवन। राम मंदिर धर्मिक दृष्टि से और नया संसद भवन वैश्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इनके निर्माण में विजय मंदिर के प्रारूप को अपनाना विदिशा के लिए गौरव की बात है। इससे यह भी पता चलता है कि हमारे देश में 11वीं शताब्दी में वास्तुकार कितने कुशल थे, जिनकी कुशलता का लोहा वर्तमान के वास्तुकार भी मानते है।

Posted By: Ravindra Soni

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