Health News: भारतीय शिशु अकादमी के तहत शिशु रोग विशेषज्ञों के लिए नवजात बच्चों का पुनर्जीवन कार्यक्रम किया गया। इस एडवांस कार्यशाला में मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के 42 डॉक्टर्स को प्रशिक्षण दिया गया। कार्यशाला में बताया गया कि जन्म के दौरान नवजात बच्चों का नहीं रोना और तुरंत सांस रुक जाना हर पांचवें बच्चे की मौत का कारण बनता है। इसी को रोकने के संबंध में डाक्टरों को प्रशिक्षण दिया गया। जिसमें एंबू बैग के उपयोग, चेस्ट कंप्रेशन यानि बच्चों की छाती दबाकर सांस वापस लाना, नाल के माध्यम से इंजेक्शन दवा आदि देना और एंडोट्रेकल ट्यूब का उपयोग किस तरह करना है। उसका प्रशिक्षण दिया गया।
शिशु मृत्यु दर होगी कम
शाखा विदिशा के अध्यक्ष डॉक्टर एमके जैन ने बताया कि कार्यशाला जन उपयोगी और लाभदायक रहेगी और शिशुओं को बीमारियों और असामयिक होने वाली मृत्यु से बचाया जा सकेगा। साथ ही राज्य में शिशु मृत्यु दर को कम करने में सहायता मिलेगी। प्रदेश में शिशु मृत्युदर ज्यादा है, इसे कम करने के उद्देश्य से ऐसी कार्यशालाएं हो रही हैं। इससे जिला अस्पताल में बेसिक कार्यशाला हुई थी ये उससे थोड़ी एडवांस है।
मृत्यु में 25 फीसद कमी आ सकती है
आइपीए की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और मेडिकल कालेज की शिशु रोग विभाग की एचओडी डॉ नीति अग्रवाल ने बताया कि बच्चे के जन्म लेने पर ही उसे बचाना जरूरी है, लेकिन जन्म के समय यदि बच्चो रोता नहीं है या सांस रुक गई है तो एंबू बैग के माध्यम से उसे किस तरह सांस देनी है। उसकी छाती को किस तरह दबाना है ताकि बच्चे की जान बचाई जा सके। ये बेसिक क्रियाएं हैं। ये उपकरण हर डिलीवरी पाइंट पर होते हैं, लेकिन इनका नियमित उपयोग करना जरूरी है।
10 फीसदी बच्चों को होती है समस्या
डा अग्रवाल ने बताया, ' केवल 10 फीसद बच्चों में जन्म के समय ये समस्या आती है। इसे रोककर 25 फीसद तक मृत्युदर को कम कर सकते हैं।।' उन्होंने बताया कि हर पांचवे बच्चे की मौत इसी कारण से होती है। कार्यशाला में झांसी मेडिकल कालेज के डॉक्टर ओम शंकर चौरसिया, ग्वालियर के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ अनंत केतकर, डॉ प्रवीण गर्ग, पीपल्स मेडिकल कालेज से डॉ दिनेश मेकले और ऐलन मेडिकल कॉलेज से डॉ स्वेता आनंद आदि मौजूद थे।
Posted By: Kushagra Valuskar
- Font Size
- Close