बिलासपुर(नईदुनिया प्रतिनिधि)। शरीर के आंतरिक अंगों की सफाई करने के लिए अंतधौति का अभ्यास करना चाहिए। योग विशेषज्ञों का कहना है किअन्तर्धीति के चार प्रकार होते हैं। पहला है वातसार, दूसरा है वारिसार, तीसरा है वहिसार और चौथा है बहिष्कृत। आन्तरिक अंगों की सफाई करने वाली प्रक्रिया के ये चार उपविभाग है।

इनके अभ्यास से शरीर निर्मल होता। योग विशेषज्ञों का कहना है कि वारिसार धौति, जल के द्वारा आन्तरिक अंगों की सफाई करती है। आमाशय को जल से भर देते हैं, फिर उसे बाहर निकाल देते. हैं। जल से सफाई करने पर पित्त और कफ, जो पेट और अन्न नलिका में अधिक मात्रा में रहते हैं, बाहर निकल जाते हैं।

आंतों में छोटी आंत और बड़ी आंत में जो विषाक्त पदार्थ चिपके रहते हैं, वे भी घुलकर बाहर निकल जाते हैं। तीसरी क्रिया है वह्निसार, अग्नि द्वारा पेट की सफाई। इसका दूसरा नाम है अग्निसार। इसमें अग्नि द्वारा पेट की सफाई होती है। इससे जठराग्नि। वह्निसार धौति के माध्यम से आन्तरिक अंगों की सफाई करके पाचन प्रक्रिया को तीव्र बनाते हैं, ताकि पाचन का कार्य सुचारु ढंग से हो।

जब पाचन-प्रक्रिया ठीक रहती है, तब शरीर का विकास होता है, उसे समुचित पोषण मिलता है और शक्ति भी प्राप्त होती है। आन्तरिक अंगों में पाचन सम्बन्धी जो बीमारियां होती हैं, वे धौति क्रिया से ठीक हो जाती हैं। वायु के द्वारा आन्तरिक अंगों और आमाशय को साफ करती है।

कई बार यदि कहीं पर अधिक धूल-कचरा जमा हो जाए, हवा के माध्यम से साफ करते हैं। ठीक उसी प्रकार से आमाशय या अन्न नलिका में विकार और अशुद्धि होने पर वातसार धौति द्वारा पेट में वायु भेजी जाती है और वायु विषाक्त गैस या दुर्गन्धयुक्त वायु को बाहर निकालती है और पाचन क्रिया को तीव्र बनाती है।

चौथा अभ्यास है बहिष्कृत धौति । यह बहिष्कृत धौति वातसार धौति के समान है। वातसार धौति में वायु को अन्दर लिया जाता है। बहिष्कृत धौति में भी वायु का प्रयोग होता है। इसमें वायु द्वारा आंतों की सफाई होती है। यह अभ्यास बड़ी और छोटी आंत के लिए है।

Posted By: Nai Dunia News Network

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