Modi Govt Foreign Policy: नरेंद्र मोदी सरकार के 9 साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी निर्विवादित तौर पर दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शामिल हो गये हैं। दुनिया भर के नेता भारतीय प्रधानमंत्री की तारीफें करते नहीं थकते। आज भारत को सबसे ज्यादा आबादी वाले और विस्तारवादी चीन के मंसूबों पर विराम लगाने वाले शक्तिशाली देश के तौर पर देखा जाता है। इन 9 सालों में भारतीय विदेश नीति में कई गंभीर बदलाव हुए हैं और दुनिया भर में भारत की छवि और विदेशी संबंधों में शानदार प्रगति हुई है। आइये जानते हैं भारतीय विदेश में क्या अहम बदलाव हुए हैं और उनका असर क्या हुआ।
व्यापक बदलाव
साल 2014 के मई महीने में नरेंद्र मोदी ने पहली बार पीएम के रूप में देश की सत्ता संभाली थी। उसके बाद से विदेश नीति में इतने व्यापक बदलाव हुए, जो पिछले किसी भी प्रधानमंत्री के कार्यकाल में नहीं हुए थे। सरकार के आलोचक भी मानते हैं कि मोदी सरकार ने इन 9 सालों में विदेश नीति पर स्पष्ट छाप छोड़ी है और भारत को दुनिया की बड़ी ताकत बनाने को लेकर काफी कवायद की है। इसका एक प्रमाण ये भी है कि प्रधानमंत्री मोदी अब तक देश के किसी भी प्रधानमंत्री से ज्यादा विदेश यात्रा कर चुके हैं। साल 2023 के अप्रैल तक उन्होंने 67 विदेश यात्राएं की थीं।
आक्रामक विदेश नीति
विदेशी मामलों में भारत का रुख कभी आक्रामक नहीं रहा। लेकिन चाहे पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक हो या यूक्रेन के मुद्दे पर यूरोप और अमेरिका को सीधा जवाब, भारत ने पूरी मजबूती से अपना पक्ष रखा। इस साल जून के महीने में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जब कहा, 'यूरोप को उस मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि उसकी समस्याएं पूरी दुनिया की समस्याएं हैं, लेकिन दुनिया की समस्याएं, यूरोप की समस्या नहीं है।' तो ये बयान भारतीय विदेशी नीति में आए बदलाव का सबसे बड़ा प्रमाण था। ये भारत के अब तक के मिजाज से बिलकुल अलग था। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भी मोदी सरकार ने रूस और अमेरिका दोनों विरोधी देशों के साथ अपने रिश्तों में निकटता बनाए रखी। यह विदेश नीति का बड़ा कौशल था।

नेहरु की नीति से अगल राह
विदेशी मामलों के जानकार अक्सर भारतीय विदेश नीति को पंडित नेहरू की विदेश नीति के चश्मे से देखते हैं, जो गुट निरपेक्ष, पंचशील और समाजवादी व्यवस्था से प्रभावित थी। लेकिन समय से साथ परिस्थितियां बदल गई हैं। अब भारत नॉन अलाइनमेंट (गुट निरपेक्ष) के बदले अब मल्टी-अलाइनमेंट (बहुपक्ष) की नीति पर चल रहा है। उदाहरण के तौर पर भारत, चीन और रूस की अगुआई वाले ब्रिक्स, एससीओ और आरआईसी में भी है, तो अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान के गुट क्वॉड में भी, जो चीन के खिलाफ है। भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा और रूसी एस-400 डिफेंस मिसाइल सिस्टम ख़रीद मामले में भी अमेरिकी आपत्तियों को खारिज कर दिया। इसके बावजूद भारत के अमेरिका या यूरोपीय देशों से संबंध खराब नहीं हुए हैं। भारत ने यह सिद्ध कर दिया कि वह अपने आर्थिक और सामरिक संबंधों के मामले में स्वतंत्र है और अपने हित में खुद फैसले लेता है।
ईस्ट और वेस्ट में समन्वय
वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी ने अपने प्रथम शपथ ग्रहण समारोह के दौरान ही अपनी विदेश नीति के रूपरेखा के संकेत दे दिए थे। उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में मोदी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ सहित दक्षेस के सभी नेताओं को आमंत्रित किया था। श्रीलंका, बांग्ला देश, भूटान आदि पड़ोसी देशों को मदद देने के अलावा उन्होंने लुक ईस्ट की पॉलिसी अपनाई। पिछले 9 सालों में भारत के जापान, इंडोनेशिया, वियतनाम, दक्षिण कोरिया आदि देशों से काफी अच्छे संबंध बन चुके हैं। ये देश अब भारत से हथियार और मिसाइलें खरीद रहे हैं। दूसरी ओर भारत ने अफगानिस्तान, सऊदी अरब और यूएई जैसे मुस्लिम देशों से भी बेहतर संबंध बनाये।
क्यों आया बदलाव?
आज की जो दुनिया है उसमें भारत के लिए जो चुनौतियां हैं वो इतिहास में कभी नहीं रही। नेहरू के दौर में दुनिया दो विश्व शक्तियों में बंटी थी। लेकिन आज रूस काफी कमजोर हो चुका है और अमेरिका की भी पहले जैसी स्थिति नहीं रही। उसे चीन का मुकाबला करने के लिए भारत की जरुरत है। ऐसे में मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों और चुनौतियों के हिसाब से जैसी विदेश नीति होनी चाहिए, पीएम मोदी की विदेश नीति बिल्कुल वैसी ही है। हमारी विदेश नीति में लचीलापन भी है और दूरदर्शिता भी है। इसी वजह से आज भारत एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय ताकत के तौर पर स्थापित हो चुका है।
भविष्य का चुनौतियां
यह एशिया के उत्थान की सदी है और इस सदी में भारत के समक्ष चीन की चुनौती बरकरार रहेगी। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते कदमों को रोकना, सरकार के लिए सबसे मुश्किल चुनौती होगी। इस मुद्दे पर भारत-रूस की साझेदारी की राह में बाधा आ सकती है। पीएम मोदी ने भले कहा था कि ये युद्ध का दौर नहीं है लेकिन महाशक्तियाँ फिर से आपस में टकराने को तैयार हैं। इस बीच भारत पश्चिम को यह समझाने में कामयाब रहा है कि उसकी मज़बूती से अमेरिका या यूरोप को ख़तरा नहीं है बल्कि फ़ायदा है। शीत युद्ध के बाद एक बार फिर से शक्ति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। ऐसे में यह भारत के लिए संकट की घड़ी है तो दुनिया में अपनी हैसियत बढ़ाने मौक़ा भी।
Posted By: Shailendra Kumar