
डिजिटल डेस्क। प्रदूषण की चादर में ढकी दिल्ली को साफ हवा दिलाने की कोशिश अब आसमान के जरिए की जा रही है। दिल्ली सरकार आज पहली कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) कराने की तैयारी में है। हालांकि, इसके लिए मौसम का अनुकूल रहना जरूरी है।
पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि जैसे ही कानपुर में दृश्यता 2,000 मीटर से बढ़कर 5,000 मीटर होगी, विशेष विमान दिल्ली के लिए उड़ान भरेगा। मौसम की स्थिति ठीक रही, तो मंगलवार को दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की जाएगी।
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दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण स्तर को देखते हुए सरकार ने क्लाउड सीडिंग तकनीक से कृत्रिम वर्षा कराने का निर्णय लिया है। इससे हवा में मौजूद धूल और जहरीले तत्व नीचे बैठ जाते हैं, जिससे प्रदूषण में अस्थायी कमी आती है और वायु गुणवत्ता बेहतर होती है।
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क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें बादलों की भौतिक अवस्था को बदलने के लिए रासायनिक यौगिकों का छिड़काव किया जाता है। इसमें सिल्वर आयोडाइड, नमक, सूखी बर्फ या अमोनियम नाइट्रेट जैसे पदार्थों का उपयोग किया जाता है। ये कण बादलों की नमी को आकर्षित कर संघनन बढ़ाते हैं, जिससे बूंदें भारी होकर बारिश के रूप में गिरती हैं।
1. पहला चरण
सबसे पहले वांछित क्षेत्र के ऊपर वायु द्रव्यमान को ऊपर भेजा जाता है ताकि बादल बन सकें। इसके लिए कैल्शियम क्लोराइड, यूरिया या अमोनियम नाइट्रेट जैसे रसायनों का उपयोग किया जाता है।
2. दूसरा चरण
बने हुए बादलों के द्रव्यमान को नमक और सूखी बर्फ से और सघन किया जाता है ताकि उनमें पर्याप्त नमी जमा हो सके।
3. तीसरा चरण
इसके बाद सिल्वर आयोडाइड या सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायन हवाई जहाज, रॉकेट या गुब्बारों के जरिए बादलों में छोड़े जाते हैं। इससे बादल बर्फीले रूप में बदल जाते हैं और भारी होकर वर्षा करने लगते हैं।
इस तकनीक का उद्देश्य केवल प्रदूषण कम करना ही नहीं, बल्कि सूखे इलाकों में फसलों की सिंचाई और जल संकट जैसी समस्याओं से राहत दिलाना भी है। कई देशों में इसका उपयोग सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक किया गया है।
सामान्य वर्षा सूर्य की गर्मी से हवा के ऊपर उठने, ठंडा होने और संघनन के बाद होती है। जबकि कृत्रिम वर्षा वैज्ञानिक रूप से प्रेरित होती है, जिसमें बादलों को बारिश के लिए तैयार करने हेतु रसायनों का प्रयोग किया जाता है।