
डिजिटल डेस्क। क्या बड़ा-क्या छोटा, देश में जितने भी एयरपोर्ट हैं जहां से इंडिगो की फ्लाइट( indigo flight crisis) उड़ान भरती है, वहां आपको लंबी-लंबी कतारें देखने को मिलेंगी। हर तरफ यात्री परेशान हैं, किसी की शादी है, तो किसी को शादी में जाना है, तो किसी के घर में किसी की मौत हो गई है। लोग अपने हिसाब से तर्क दे रहे हैं, सरकार अपने हिसाब से और कंपनी का अपना तर्क है।
इसकी शुरुआत 2 अक्टूबर 2025 से हुई… जब DGCA द्वारा फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिट (FDTL) में किए गए बदलावों के बाद इंडिगो ने लगातार कई फ्लाइटें रद करनी शुरू कर दीं। पिछले कई दिनों से जारी इस स्थिति ने एयरपोर्ट्स पर अफरातफरी पैदा कर दी है। इसकी सबसे बड़ी वजह है भारतीय एविएशन सेक्टर में इंडिगो की भारी हिस्सेदारी।
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कैसे शुरू हुआ संकट
देश की सबसे बड़ी एयरलाइन पिछले कुछ हफ्तों से फ्लाइट लेट और तकनीकि दिक्कतों का सामना कर रही थी, इसके लिए मौसम और एयरपोर्ट पर भीड़ को जिम्मेदार बताया जा रहा था। लेकिन इंडिगो के लिए असली खेल तब शुरू हुआ फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) को सरकार की तरफ से लागू किया गया। फिर क्या था, पायलटों को थकान से बचाने के मसकद से शुरू हुआ यह नियम पहले से ही स्टाफ की संकट में फंसी इंडिगो के लिए काल साबित हुआ। हजारों क्रू, दर्जनों एयरपोर्ट और डेली 2000 से ज्यादा की उड़ानों की व्यवस्था एक झटके में ध्वस्त हो गई। नतीजा सबके सामने है कि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इससे 2000 ज्यादा उड़ाने रद हो चुकी हैं।
मार्केट में भारी हिस्सेदारी
आज भारतीय एयरलाइन मार्केट के 60 प्रतिशत से ज्यादा हिस्से पर इंडिगो का कब्जा है। यानी रोजाना उड़ान भरने वाले 10 में से करीब 6 यात्री इंडिगो में सफर करते हैं। कंपनी के विमान हर दिन दुनिया भर में 2000 से अधिक उड़ानें भरते हैं। ऐसे में जब इंडिगो कुछ रूट्स पर फ्लाइट रद्द करती है, तो पूरा एविएशन सिस्टम डगमगा जाता है। चलिए आपको इंडिगो की जर्नी के बारे में बताते हैं।
दो दोस्तों ने रखी नींव
इंडिगो की शुरुआत दो दोस्तों राहुल भाटिया और राकेश गंगवाल ने मिलकर की। 2005 में कंपनी की नींव रखी गई और कुछ ही समय में यह भारतीय आसमान की सबसे भरोसेमंद एयरलाइन बन गई।
जब इंडिगो लॉन्च हुई, तब इनके पास सिर्फ एक किराए का प्लेन था। उस समय एयर इंडिया, जेट एयरवेज और किंगफिशर जैसी दिग्गज कंपनियां बाजार में थीं। कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच इंडिगो ने ज़ीरो से टॉप तक का सफर तय किया और कुछ ही वर्षों में “किंग ऑफ एयरलाइंस” कहलाने लगी।
क्यों रखा गया ‘IndiGo’ नाम?
कंपनी का नाम ‘IndiGo’ दरअसल ‘India on the Go’ के कॉन्सेप्ट से लिया गया था। दोनों संस्थापकों ने इसे एक ऐसी एयरलाइन बनाने का लक्ष्य रखा था जो भारत को तेज़ी से जोड़ सके।
किराए के प्लेन से हुई शुरुआत
उस दौर में दुनिया में दो ही एयरक्राफ्ट कंपनियों का दबदबा था बोइंग और एयरबस। जहां ज्यादातर भारतीय एयरलाइंस बोइंग का इस्तेमाल कर रही थीं, वहीं इंडिगो ने एक बड़ा फैसला लेते हुए एयरबस से 100 A320 विमानों का ऑर्डर दे दिया।

एयरबस भारतीय मार्केट में पैर जमाना चाहता था, इसलिए उसने इंडिगो को 40 से 50 प्रतिशत डिस्काउंट पर विमान उपलब्ध कराए। राहुल और राकेश ने ये एयरबस A320 लगभग आधी कीमत पर खरीदे और बाद में सभी प्लेन्स को मुनाफे के साथ बेच दिया। इससे कंपनी को करीब 200 करोड़ रुपये का लाभ हुआ।
इसी रकम से इंडिगो ने सभी विमानों को लीज पर लेना शुरू किया और देश के बड़े शहरों में अपनी मौजूदगी बढ़ाई।
कैसे बनी सबसे भरोसेमंद एयरलाइन?
इंडिगो ने भारतीय मिडिल क्लास को ध्यान में रखते हुए सस्ती हवाई यात्रा का मॉडल अपनाया। महंगी सुविधाओं पर पैसा खर्च करने की बजाय कंपनी ने समय पर उड़ान, भरोसेमंद सेवा और किफायती किरायों पर फोकस किया। धीरे-धीरे यह उन यात्रियों की पहली पसंद बन गई जो ‘लो-कॉस्ट’ लेकिन विश्वसनीय यात्रा चाहते थे।
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इंडिगो का विस्तार
इंडिगो ने 2023 तक 10 करोड़ यात्रियों को सेवा दी, जो इंडियन एविएशन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है।

‘किंग ऑफ एयरलाइंस’ कैसे बनी?
अगस्त 2025 तक भारत के एविएशन मार्केट में इंडिगो की हिस्सेदारी 64.2 प्रतिशत थी। यह न सिर्फ भारत की सबसे बड़ी बल्कि एशिया की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन बन चुकी है। 2025 में यह 34 घरेलू और 43 अंतरराष्ट्रीय रूट्स पर हर दिन लगभग 2,700 उड़ानें ऑपरेट कर रही थी।