Parliament Sengol: देश में नई संसद भवन के उद्घाटन की तैयारियां जोरशोर से जारी है। वहीं इस पर राजनीति भी खूब हो रही है। इस बीच, पहली बार सामने आए सेंगोल को लेकर भी देश में जबरदस्त चर्चा और कौतूहल है।
सेंगोल से जुड़ी ताजा खबर यह है कि तमिलनाडु से इस पवित्र सेंगोल को दिल्ली लाया जाएगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा जाएगा। मदुरै अधीनम के मुख्य पुजारी श्री हरिहर देसिका स्वामीगल पीएम मोदी को सेंगोल भेंट करेंगे।
इससे पहले उन्होंने कहा, नरेंद्र मोदी को 2024 में फिर से पीएम बनना चाहिए। मदुरै अधीनम के 293वें प्रधान पुजारी 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री को राजदंड (सेंगोल) भेंट करेंगे।
श्री हरिहर देसिका स्वामीगल ने कहा कि पीएम मोदी की दुनियाभर में तारीफ हो रही है और देश में सभी को उन पर गर्व है। वह लोगों के लिए अच्छे काम कर रहे हैं। 2024 में उन्हें फिर से पीएम बनना है और लोगों का मार्गदर्शन करना चाहिए। हम सभी को बहुत गर्व है क्योंकि विश्व नेता हमारे पीएम मोदी की सराहना कर रहे हैं।
अंग्रेजों से भारत में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में 14 अगस्त 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ऐतिहासिक राजदंड प्राप्त किया गया था। 28 मई को भी यही होने जा रहा है।
सबसे पहले प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना पद्मा सुब्रह्मण्यम ने बताया सेंगोल के बारे में
सेंगोल के बारे में सबसे पहले प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना पद्मा सुब्रह्मण्यम ने सरकार को जानकारी दी थी। पद्मा सुब्रह्मण्यम के मुताबिक, 2021 एक तमिल मैगजीन में प्रकाशित आर्टिकल में इस बात का जिक्र था कि 14 अगस्त 1947 की रात को सत्ता हस्तांतरण के तौर पर जवाहर लाल नेहरू ने सेंगोल दिया गया था। जब उन्होंने इसे पढ़ा तो उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि इस धरोहर के बारे में सबको जानना चाहिए।
इसके बाद उन्होंने पीएमओ को चिट्टी लिखकर ये मांग की थी कि पीएम को इसके बारे में देशवासियों को बताना चाहिए। इसके बाद पीएमओ ने चिट्ठी को बेहद गंभीरता से लिया। पीएम के आदेश पर सेंगोल को तलाश शुरू हुई। अफसरों की टीम ने इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फार आर्ट की मदद से इसकी छानबीन शुरू की लेकिन कुछ पता न चला।
उसके बाद नेशनल अभिलेखागार में उस समय से अखबारों को ढूंढ गया। पता चला कि सेंगोल को तमिलनाडु के वुम्मिदी बंगारू फैमिली ने बनाया था। लेकिन संपर्क करने पर निर्माता भी बता नहीं पाए कि आखिर वह है कहां? उन्होंने ये जरूर बताया कि वह कैसा दिखता है। इसके बाद देशभर के अन्य म्यूजियमों में इसकी तलाश शुरू हुई और आखिर यह इलाहाबाद के आनंद भवन में मिल ही गया।
Posted By: Arvind Dubey
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