लॉकडाउन के दौरान आम लोगों की भावना को समझने के लिए IIM लखनऊ ने एक ऑनलाइन अध्ययन किया। इसमें उन्होंने पाया कि कोरोना महामारी की वजह से पैदा हो वाले स्वास्थ्य मुद्दों की तुलना में लोग आर्थिक संकट से अधिक चिंतित हैं। आईआईएम लखनऊ में सेंटर फॉर मार्केटिंग इन इमर्जिंग इकोनॉमीज (सीएमईई) द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला कि कि बहुमत (79 प्रतिशत) लोग चिंतित हैं और (40 प्रतिशत) लोग भय की भावना से व (22 प्रतिशत) लोग दुख की भावना से घिरे हुए हैं।
23 राज्यों के 104 शहरों के प्रतिभागियों की प्रतिक्रियाओं पर आधारित इस अध्ययन में कहा गया है कि अधिकांश उत्तरदाता लॉकडाउन के आर्थिक प्रभाव से चिंतित हैं। लोगों के बीच अन्य प्रमुख डर है कि एक बार लॉकडाउन हट जाने के बाद लोगों का तर्कहीन व्यवहार है। आर्थिक प्रभाव की चिंता लोगों के मन में सबसे अधिक (32 प्रतिशत) है, जबकि अन्य लोगों के डर से लॉकडाउन (15 प्रतिशत) के दौरान गैरजिम्मेदार व्यवहार करते हैं और यह अनिश्चितता सभी (16 प्रतिशत) अन्य प्रमुख भय हैं।
चिंता का एकमात्र सबसे बड़ा कारण लॉकडाउन के आर्थिक प्रभाव से संबंधित था, जबकि इसके बाद दूसरा कारण अनिश्चितता थी कि यह लॉक डाउन कितने समय तक चलेगा। 14 फीसदी लोगों ने कहा कि संक्रमित होना उनकी वास्तव में उनकी सबसे बड़ी चिंता नहीं थी। सत्यभूषण दाश और अविनाश जैन (आईआईएम लखनऊ) ने आशु सभरवाल और अंकिता सिंह (क्वालिस रिसर्च एंड कंसल्टिंग) और मोहनकृष्णन (पूर्व वीपी, कैंटर) के साथ मिलकर रिसर्च स्टडी की।
इस अध्ययन में यह भी पता चला है कि हर 5 में से 3 लोगों ने भारत को महामारी से निपटने में मदद करने के लिए किए गए सरकारी कार्यों में विश्वास व्यक्त किया है। लॉकडाउन 1.0 में 57 फीसदी लोग सरकार के कामों पर विश्वास कर रहे थे, जबकि इसकी तुलना में लॉकडाउन 2.0 में छह फीसदी इजाफे के साथ 63 प्रतिशत लोगों के आत्मविश्वास में वृद्धि हुई। दरअसल, मास्क, पीपीई किट आने और बेहतर प्रोटोकॉल सेट होने के साथ स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में सुधार होने की खबर से यह अंतर आया।
अधिकांश लोगों को यह विश्वास सरकार द्वारा किए गए शुरुआती लॉकडाउन और सामाजिक दूरी और कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग (70 प्रतिशत) को बनाए रखने के प्रयासों से उपजा है।
Posted By: Shashank Shekhar Bajpai
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