World Hindi Diwas 2020 Poems Quotes: हर वर्ष 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1953 से हुई थी। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति ने भी 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाने के लिए इसलिए चुना क्योंकि इसी दिन ख्यात साहित्यकार व्यौहार राजेंद्र सिंह का जन्म हुआ था। इस दिन हिन्दी के गौरवशाली इतिहास और तकनीक के दौर में भी इसकी उपयोगिता पर चर्चा होती है। सरकारी दफ्तरों में, स्कूलों में, कॉलेजों में हिन्दी प्रतियोगिता का आयोजित किया जाता है तथा कहीं-कहीं सप्ताह भर तक हिन्दी सप्ताह का आयोजन भी किया जाता है। हिन्दी कविता का भी विशेष महत्व है। यहां हम चुनिंदा हिन्दी कविताएं दे रहे हैं, जिन्हें आप Hindi Diwas 2020 के मौके पर अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं।
हरिवंशराय बच्चन
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने...
फ़ासला था कुछ हमारे बिस्तरों में
और चारों ओर दुनिया सो रही थी,
तारिकाएँ ही गगन की जानती हैं
जो दशा दिल की तुम्हारे हो रही थी,
मैं तुम्हारे पास होकर दूर तुमसे
अधजगा-सा और अधसोया हुआ सा,
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
एक बिजली छू गई, सहसा जगा मैं,
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में,
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में,
मैं लगा दूँ आग इस संसार में है
प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर,
जानती हो, उस समय क्या कर गुज़रने
के लिए था कर दिया तैयार तुमने!
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
प्रात ही की ओर को है रात चलती
औ’ उजाले में अंधेरा डूब जाता,
मंच ही पूरा बदलता कौन ऐसी,
खूबियों के साथ परदे को उठाता,
एक चेहरा-सा लगा तुमने लिया था,
और मैंने था उतारा एक चेहरा,
वो निशा का स्वप्न मेरा था कि अपने पर
ग़ज़ब का था किया अधिकार तुमने।
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
और उतने फ़ासले पर आज तक सौ
यत्न करके भी न आये फिर कभी हम,
फिर न आया वक्त वैसा, फिर न मौका
उस तरह का, फिर न लौटा चाँद निर्मम,
और अपनी वेदना मैं क्या बताऊँ,
क्या नहीं ये पंक्तियाँ खुद बोलती हैं--
बुझ नहीं पाया अभी तक उस समय जो
रख दिया था हाथ पर अंगार तुमने।
रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था 'प्यार' तुमने।
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रघुवीर सहाय
अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि जिसमें छंद घूमकर आय
घुमड़ता जाय देह में दर्द
कहीं पर एक बार ठहराय
कि जिसमें एक प्रतिज्ञा करूं
वही दो बार शब्द बन जाय
बताऊँ बार-बार वह अर्थ
न भाषा अपने को दोहराय
अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि कोई मूड़ नहीं मटकाय
न कोई पुलक-पुलक रह जाय
न कोई बेमतलब अकुलाय
छंद से जोड़ो अपना आप
कि कवि की व्यथा हृदय सह जाय
थामकर हँसना-रोना आज
उदासी होनी की कह जाय।
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दुष्यंत कुमार
ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो
दर्दे—दिल वक़्त पे पैग़ाम भी पहुँचाएगा
इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो
लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे
आज सैयाद को महफ़िल में बुला लो यारो
आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे
आज संदूक से वो ख़त तो निकालो यारो
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो
कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो
लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की
तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो
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(संजय जोशी ‘सजग‘)
हम सबकी प्यारी,
लगती सबसे न्यारी।
कश्मीर से कन्याकुमारी,
राष्ट्रभाषा हमारी।
साहित्य की फुलवारी,
सरल-सुबोध पर है भारी।
अंग्रेजी से जंग जारी,
सम्मान की है अधिकारी।
जन-जन की हो दुलारी,
हिन्दी ही पहचान हमारी।
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हिंदी हमारी आन है, हिंदी हमारी शान है,
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है,
हिंदी हमारी वर्तनी, हिंदी हमारा व्याकरण,
हिंदी हमारी संस्कृति, हिंदी हमारा आचरण,
हिंदी हमारी वेदना, हिंदी हमारा गान है,
हिंदी हमारी आत्मा है, भावना का साज़ है,
हिंदी हमारे देश की हर तोतली आवाज़ है,
हिंदी हमारी अस्मिता, हिंदी हमारा मान है,
हिंदी निराला, प्रेमचंद की लेखनी का गान है,
हिंदी में बच्चन, पंत, दिनकर का मधुर संगीत है,
हिंदी में तुलसी, सूर, मीरा जायसी की तान है,
जब तक गगन में चांद, सूरज की लगी बिंदी रहे,
तब तक वतन की राष्ट्र भाषा ये अमर हिंदी रहे,
हिंदी हमारा शब्द, स्वर व्यंजन अमिट पहचान है,
हिंदी हमारी चेतना वाणी का शुभ वरदान है।
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कविता – नेता तु दल बदल
ले नेता अपना दल बदल
जहाँ फायदा वहाँ को चल
राजनीति मतलब लाभ हानि
तु है नेता लिख नई कहानी
कहानी है खादी कुर्ते की
कुर्ते में लिपटी कुर्सी की
कुर्सी में चिपके नेता की
नेता को सहती पार्टी की
पार्टी कमजोर हुई तु सम्भल
नेतागिरी का रख जारी दंगल
दंगल में छिपा नेता तेरा मंगल
मंगल को भी कर दे तु जंगल
जंगल में अपमान सम्मान छोड़
पुरानों से मुंह मोड़ नये से जोड़
आराम से बैठे आलसी बन दौड़
यही लायेगा स्वार्थ को जोड़ तोड़
जोड़ तोड़ कर तू ले नया दल
नेता है तु तेरा काम दल बदल
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कविता – चलो चाँद के पार चलो
चलो चाँद के पार
वह भी बिना स्वर्ग सिधार।
गया बेचारा विक्रम
हमारे आंसू आये हजार।।
काश विक्रम बाबू
चाँद की तस्वीरें भेजता।
तो गली-गली सरफिरा आशिक़
प्रेमिका को चाँद नहीं कहता।।
जिसे देख देख वो कहता
चाँद का टुकड़ा।
विक्रम अंदर से दिखला देता
तो सुनाता फिरता दुखड़ा।।
विक्रम के साथ भी हुआ यही
जैसे ही देखी चंदा की जमी।
दिल में हुई जबरदस्त टूट फुट
और इसरो से संपर्क गया छूट।।
अब लैंडर का नाम विक्रम नहीं
वीर नारी रखा जायेगा।
ताकि चाँद की असलियत देख
घायल नहीं हो पायेगा।।
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कविता – ट्रैफिक पुलिस मैन बनूँगा
माँ मुझे बुक्स दिला दो
मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
ट्रैफिक पुलिस मैन बनकर
खूब सारा खाऊंगा।।
ना खाऊंगा ना खाने दूंगा
बोले माइक पर मोदी जी।
ट्रैफिक नियम लागू ऐसे कर
झोली खाली कर दी जी।
इस झोली का कितना पैसा
लगता सरकार के हाथ।
बीच में ट्रैफिक पहरेदार
कर लेंगे हाथ साफ़।।
पहले दौ-तीन सौ कमाते
अब कमाएंगे हजार।
देखते देखते अर्थव्यवस्था में
हो जायेगा सुधार।।
तरीका सरकारी खजाना
बढ़ाने का है पाक-साफ़।
लेकिन देश की सड़के
दिख रही जगह जगह हाफ।।
कहीं-कहीं पर हाफ
कहीं-कहीं पर साफ़।
कहीं-कहीं पर गाड़ी निकले
करते हुए मंत्र जाप।।
पर ट्रैफिक वाले का डंडा
सिखाने चला नियम कानून।
सड़कों से बच जाओ तो
धन लूट के पियेंगे खून।।
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लघु हिंदी कविता – ईमानदार आदमी
जो करता सीधा-सीधा अपना काम।
सुबह जल्दी जाता ऑफिस आये देर शाम।।
बस ऑफिस में खाता थोड़ा पैसा।
तो किसी किसी से लेता चाय समोसा।।
ऐसे पाता ईमानदारी से काम का ईनाम।
फिर भी कुछ बोले रिश्वतखोर बेईमान।।
इसलिए बेचारा कभी-कभी फाइल अटका देता।
कुछ बेकार गरीब लोगों को सबक सिखला देता।।
काटते चक्कर बनके घनचक्कर ऑफिस-ऑफिस।
तुरंत ईमानदारी से काम की देखो देनी पड़े फ़ीस।।
उस फ़ीस को लोग घूस बोल चिड़ाते।
इसलिए बेचारे हर बार थोड़ी-थोड़ी बढ़ाते।।
आखिर टॉर्चर किया जाये तो बढ़ाना पड़े है रेट।
ऐसे ही तो ईमानदारी का काम होता सबसे बेस्ट।।
बेस्ट होते इस तरह ईमानदारी से काम करते कर्मचारी।
जानते कितनी मुश्किल से मिली है यह नौकरी सरकारी।।
Posted By: Arvind Dubey
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