लॉकडाउन में मध्य प्रदेश समेत अन्य राज्यों में काम कर रहे मजदूरों के सब्र का बांध टूट रहा है। बड़ी संख्या में रोजाना मजदूर परिवार सहित पलायन कर अपने घर लौट रहे हैं। कोई पैदल सैकड़ों किमी का रास्ता नाप रहा तो कोई ट्रक-ट्रॉलों में भेड़-बकरियों की तरह सफर करने को मजबूर है। वाहनों की छतों पर लू के थपेड़े शरीर को पस्त कर देती है, लेकिन घर पहुंचने की जद्दोजहद में लगे मजदूर इन कष्टों को भूल जाते हैं। उनकी रातें भी खुले आसमां के नीचे बीत रही हैं। जो कुछ खाने-पीने को मिलता उससे पेट की आग बुझा लेते हैं।
Photo Gallery : पैदल नाप रहे रास्ता, खुले आसमां के नीचे बीत रही रातें


मध्य प्रदेश में बड़वानी की सीमा पर पुलिस द्वारा ट्रक व ट्राले रुकवाकर मजदूरों को बैठाया जा रहा है। लेकिन बैठाने का सिस्टम नहीं होने से शारीरिक दूरी के नियम की धज्जियां उड़ रही है।

भोपाल रेलवे स्टेशन पर बुधवार सुबह एक ट्रेन मजदूरों को लेकर पहुंची। विदिशा जाने वाले मजदूरों को जब कोई गाड़ी नहीं मिली तो वे पैदल ही चल दिए। फोटो : निर्मल व्यास

लॉकडाउन का यह नजारा पत्थर दिल को भी रुला देगा। देश का मजदूर वर्ग बेबस है, वो सिर्फ अपने घर जाना चाहता है। परिवार के साथ निकले इन लोगों के लिए आसमान ही छत है और सड़कें ही इनकी रसोई और बिछौना है। तस्वीर जबलपुर की है। फोटो : राजेश मालवीय

ट्राले में सवार मजदूर महाराष्ट्र से पलायन कर उत्तर प्रदेश और बिहार जा रहे है। फोटो : प्रवीण दीक्षित

अजय सोनी पत्नी कामिनी के साथ इंदौर से पलायन कर कानपुर जाने के लिए साइकिल से निकले और एक सप्ताह में भोपाल पहुंचे। अभी कानपुर तक का सफर बाकी है। फोटो : प्रवीण दीक्षित

भोपाल के सूखी सेवनिया चौराहा बायपास से निकल रहे मजदूरों के लिए आस-पास के लोगों ने जूते चप्पल रख दिए हैं, जिससे जरूरत मंद पहन ले। फोटो : प्रवीण दीक्षित