छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे।
पुराणों के अनुसार वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे। महाभारत में सूर्य पूजा का एक और वर्णन मिलता है।
इसके अनुसार पांडवों की पत्नी द्रोपदी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।
ऐसे दिया जाता है अर्घ्य
भगवान भास्कर को सुबह और शाम अर्घ्य देते समय कमर तक पानी में खड़े होकर आराधना की जाती है। उसके बाद एक टोकरे में कई प्रकार के फल जैसे नारियल, सिंघाड़ा, केला, अन्य मिष्ठान लेकर परिक्रमा की जाती है। टोकरे पर घी के दीपक जलाए जाते हैं।
इनमें छठ मैया का महत्वपूर्ण प्रसाद ठेकुआ भी होता है। यह गेहूं के आटे में गुड़ या शक्कर(चीनी) मिलाकर बनाया जाता है। यह सब सामग्री परिजनों में वितरित की जाती है। पूजा के दिन सुहागिनों को सिंदूर लगाया जाता है।
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