वाराणसी। असत्य पर सत्य व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक पर्व विजय दशमी यानी दशहरा आश्विन शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। श्रवण नक्षत्र युक्त इस तिथि में ही मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम ने रावण का वध कर तीनों लोकों को राक्षसराज से मुक्ति दिलाई थी। यह तिथि-नक्षत्र इस बार 18 अक्टूबर को मिल रहा है। ऐसे में विजय दशमी इसी दिन मनाई जाएगी।
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार, नवरात्र की अष्टमी तिथि 17 अक्टूबर को दोपहर 12.27 बजे तक रहेगी। इसके बाद नवमी लग जाएगी और चंदा देवी पूजन, बलिदान आदि के साथ नवरात्र होमादि किए जाएंगे। अष्टमी व नवमी व्रत 17 अक्टूबर को एक साथ ही किया जाएगा। हालांकि नवमी तिथि 18 अक्टूबर को दोपहर 2.32 बजे तक है लेकिन दोनों व्रतों का पारन सुबह ही किया जा सकता है।
पं. द्विवेदी के मुताबिक, आश्विन मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 18 अक्टूबर को दोपहर बाद 2.33 बजे लग रही है जो 19 अक्टूबर को शाम 4.39 बजे तक रहेगी। श्रवण नक्षत्र 17 अक्टूबर की रात 10.05 बजे लग जा रहा है जो 18 अक्टूबर को मध्य रात्रि के बाद 12.42 बजे तक रहेगा।
शास्त्रों में कहा गया है कि "ईषत्संध्यामतिक्रान्ता किष्चदुभिन्नतारकाः विजयो नाम काकोयं सर्वकार्यार्थ सिद्धये" अर्थात पूर्व दिन दशमी विजय काल को स्पर्श करती हो या विजय काल में व्याप्त हो, पर दिन (अगले दिन) केवल अपराह्न काल में ही व्याप्त हो। अतः दशमी, श्रवण व विजय काल का योग 18 अक्टूबर को मिलने से इसी दिन विजय पर्व मान्य है।
विजय मुहूर्त 1.59 से 2.40 बजे तक : विजय दशमी पर अस्त्र-शस्त्र पूजन, शमी वृक्ष की विधिवत पूजा और अपराजिता का पूजन-अर्चन किया जाता है। इस बार विजय मुहूर्त दोपहर 1.59 बजे से 2.40 बजे तक है। इसे अपुच्छ मुहूर्त कहा गया है जिसमें किसी भी काम को प्रारंभ किया जा सकता है। इसमें किए गए सभी तरह के कार्यों में सफलता अवश्य प्राप्त होती है। प्राचीन काल में राजा-महाराज विरोधी देशों पर इस काल में आक्रमण करते थे।
नीलकंठ ने दिया था शगुन : विजय दशमी पर नीलकंठ दर्शन का विशेष महत्व होता है। इस पक्षी की भगवान शिव स्वरूप में मान्यता है। तिथि विशेष पर इनके दर्शन से निश्चित रूपेण सुख-समृद्धि, धन-ऐश्वर्य के साथ हर क्षेत्र में उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। भगवान श्रीराम के लंका प्रस्थान के समय नीलकंठ पक्षी ने दर्शन देकर विजय का शगुन दर्शाया था, तभी से विजय दशमी पर नीलकंठ दर्शन की परंपरा है।
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