Raksha Bandhan 2020: रक्षाबंधन, रक्षाबंधन- श्रावण कर्म इन दो पर्वों का अनूठा संगम है। रक्षाबंधन श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से ठीक दो दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन घर की साफ सफाई की जाती है। इस दिन चूरमा, दाल और खीर बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है। इस दिन हनुमानजी पितरों का पूर्ण आस्था से तर्पण करने के लिए जल, रोली, मोली, धूप, फूल, फल, चावल, नारियल आदि भगवान को अर्पित किया जाता है।
इसके बाद घर की सभी महिलाएं एक दूसरे को राखी बांधती हैं। बहनें अपने भाईयों को राखी बांधकर तिलक लगाती हैं। रक्षाबंधन का वैदिक स्वरुप यही है। इस दिन बहनें भाईयों को रक्षासूत्र बांधकर उ पर रक्षा का भार सौंपती हैं।
इसे कहते हैं श्रावणी कर्म
कृषि प्रधान भारत का सांस्कृति इतिहास बयां करता है कि श्रावण पूर्णिमा आ जाने पर किसान आने वाली फसल के लिए अच्छी उम्मीद करता है। क्षत्रिय विजय यात्रा से लौटते थे। वैश्य अपने व्यापार में मुनाफे की योजना बनातें हैं। साधु-सन्यासी लोग भी वर्षा के कारण वनस्थिली छोड़कर का परित्याग कर गांव के समीप आकर धर्मोपदेश देकर चौमासा व्यतीत करते हैं।
पढ़ें:यूनान से लेकर भारत तक हर जगह है राखी का महत्व
इस प्रकार श्रद्धालु भक्त ज्ञान सुनकर अपने समय का सदुपयोग करते हैं। ऋषि लोग वेद परायण करके अपनी तपस्या को सफलता की ओर ले जाते हैं। यह सभी कर्म श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से शुरू से शुरु हो जाते हैं।
पढ़ें:मां लक्ष्मी ने बांधी थी सबसे पहले इनको राखी
इन दिनों में ब्राह्मणों को किसी सरोवर या नदी के किनारे जाकर श्रावणी कर्म करना चाहिए। उन्हें भगवान सूर्य की पूजा सत्तू से करना चाहिए। इस दिन उपनयन संस्कार करके विद्यार्थियों को गुरुकुलों में वेदों का अध्ययन के लिए भेजा जाता है।
Posted By: Amit
नईदुनिया ई-पेपर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
नईदुनिया ई-पेपर पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे