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Holika Dahan Kacha Sut Upay 2024: धर्म डेस्क, इंदौर। होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को खेली जाती है। इससे एक रात पहले होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। होली पर सभी गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। माना जाता है कि होलिका दहन की अग्नि नकारात्मकता को खत्म कर देती है। इसी कारण से होलिका दहन की अग्नि में कई तरह की विशेष चीजें अर्पित की जाती है। इसी तरह कच्चा सूत भी अर्पित किया जाता है। आइए, जानते हैं कि होलिका दहन की अग्नि में कच्चा सूत क्यों चढ़ाया जाता है।
प्राचीन काल से ही लोग इस रात होलिका दहन की लकड़ियों पर कच्चा सूत लपेटकर और गाय के गोबर के उपले इकट्ठा करके होलिका की पूजा करते हैं। होलिका दहन से पहले उसकी पूजा करने और सात बार परिक्रमा करने की परंपरा भी है। ऐसा करने से बीमारियों और नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव खत्म हो जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में कच्चे सूत को बहुत पवित्र माना जाता है। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में कच्चे सूत का उपयोग किया जाता है। होलिका के चारों ओर कच्चा सूत सात या तीन बार लपेटा जाता है। इसी प्रकार होलिका दहन के समय अग्नि की परिक्रमा के साथ कच्चे सूत को अर्पित करने का विधान है।
कच्चे कपास का संबंध शनि ग्रह से माना जाता है। कच्चा सूत रोगों का नाश करने वाला और बाधाओं को दूर करने वाला होता है। ऐसे में कच्चे सूत को होलिका में लपेटकर होलिका दहन की अग्नि में अर्पित करने से कुंडली में शनि की स्थिति मजबूत होती है और शनि दोष से भी राहत मिलती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार घर में नकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश को रोकने और खत्म करने के लिए भी कच्चा सूत उपयोगी होता है। अगर घर का कोई सदस्य लंबे समय से बीमार है, तो होलिका दहन की अग्नि में उसके नाम से कच्चा सूत डालना चाहिए। माना जाता है कि इससे स्वास्थ्य में सुधार होता है। साथ ही बुरी नजर से भी बचाव होता है। होलिका दहन के लिए जब गाय के गोबर के उपलों और लकड़ियों से होलिका तैयार की जाती है, तो उन उपलों और लकड़ियों को कच्चे सूत से ही बांधा जाता है। यह होलिका को बिखरने से बचाता है और इसका उद्देश्य बुरी शक्तियों को एकजुट करना भी है।
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