सनातन धर्म के लोग चैत्र नवरात्र का पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। साल में नवरात्र का पर्व चार बार होता है। इसमें विशेष रूप से शारदीय और चैत्र नवरात्रि प्रचलन में है। वहीं, दो बार गुप्त नवरात्र पड़ता है जिसका प्रचलन ज्यादातर साधु-संतों में देखा जाता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस बार पूरे नौ दिन के नवरात्र हैं। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा और आराधना की जाती है। नवरात्र का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा का होता है। मां के पहले दो रोप शांत स्वभाव के थे। लेकिन यह रूप अत्यंत भयानक व दुष्टों का संहार करने वाला है। मां दुर्गा का यह रूप अतिविनाशकारी होता हैं जिनका जन्म ही पापियों व अधर्मियों का नाश करने के लिए हुआ था। इनकी पूजा करने से हमारे अंदर वीरता, शौर्य व साहस की जागृति होती है। आइये जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं आरती।
मां चंद्रघंटा का स्वरूप
धर्म शास्त्रों के अनुसार, मां चंद्रघंटा ने राक्षसों के संहार के लिए अवतार लिया था। मां के इस अवतार में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियां समाहित हैं। मां के हाथों में तलवार, त्रिशूल, धनुष व गदा रहती है। मां के माथे पर घंटे के आकार में अर्द्ध चंद्र विराजमान है। यही वजह है कि इन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। भक्तों के लिए माता का ये स्वरूप सौम्य और शांत है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा आराधना की जाती है जिसमें शाम 4:59 बजे तक शुभ मुहूर्त पूजा करने का रहेगा।
मां चंद्रघंटा पूजा विधि
नवरात्रि के तीसरे दिन सर्वप्रथम जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजा स्थान पर गंगाजल छिड़कें। मां चंद्रघंटा का ध्यान करें और उनके समक्ष दीपक प्रज्वलित करें। अब देवी मां को अक्षत, सिंदूर, पुष्प आदि चीजें अर्पित करें। मां को प्रसाद के रूप में फल और केसर-दूध से बनी मिठाइयों या खीर का भोग लगाएं। मां चंद्रघंटा की आरती करें। पूजा के पश्चात किसी भी गलती के लिए क्षमा याचना करें। घर परिवार के सभी सदस्यों में माता का प्रसाद वितरित करें।
मां चंद्रघंटा का भोग और प्रिय रंग
मां चंद्रघंटा की पूजा के समय सफेद, भूरा या स्वर्ण रंग का वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। इसके साथ भक्त इस दिन दूध से बने मिष्ठान का भोग लगा सकते हैं। मान्यता है कि माता को शहद भी प्रिय है।
प्रार्थना मंत्र
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
मंत्र से होने वाले लाभ
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं. देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। इनकी आराधना से व्यक्ति में वीरता का संचार होता है और शत्रु पर विजय मिलती है।
मां चंद्रघंटा की आरती
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम
पूर्ण कीजो मेरे काम
चंद्र समान तू शीतल दाती
चंद्र तेज किरणों में समाती
क्रोध को शांत बनाने वाली
मीठे बोल सिखाने वाली
मन की मालक मन भाती हो
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो
सुंदर भाव को लाने वाली
हर संकट मे बचाने वाली
हर बुधवार जो तुझे ध्याये
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं
शीश झुका कहे मन की बाता
पूर्ण आस करो जगदाता
कांची पुर स्थान तुम्हारा
करनाटिका में मान तुम्हारा
नाम तेरा रटू महारानी
'भक्त' की रक्षा करो भवानी
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Posted By: Navodit Saktawat
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