Kundali Dosh । ज्योतिष विद्या में कई तरह के योग और कुंडली के दोष के बारे में बताया गया है, लेकिन कुंडली में कुछ दोष ऐसे होते हैं, जो किसी भी जातक के जीवन में हमेशा की परेशानी खड़ी करते हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार इन दोषों के कारण जिंदगी में अक्सर नकारात्मक घटनाएं होती है। यहां जानें ऐसे की कुछ कुंडली दोषों के बारे में -
कालसर्प दोष
जन्म के समय ग्रहों की दशा में जब राहु-केतु आमने-सामने होते हैं और सारे ग्रह एक तरफ रहते हैं, तो कुंडली में ऐसी परिस्थिति को कालसर्प योग कहा जाता है। इस आधार पर कालसर्प के 12 प्रकार भी बताए गए हैं। हालांकि कुछ विद्वानों ने 250 से भी ज्यादा प्रकार के कालसर्प दोष बताए हैं। कालसर्प दोष के कारण जीवन में काफी उतार-चढ़ाव व परेशानियां आती है।
मंगल दोष
किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में से किसी भी एक भाव में है तो यह 'मांगलिक दोष' कहलाता है। इस कारण से विवाह में बाधा आती है और पारिवारिक कलह भी होता है।
पितृ दोष
ज्योतिष के मुताबिक कुंडली के नौवें में राहु, बुध या शुक्र है तो यह कुंडली पितृ दोष की है। कुंडली के दशम भाव में गुरु के होने को शापित माना जाता है। गुरु का शापित होना पितृदोष का कारण है। सातवें घर में गुरु होने पर आंशिक पितृ दोष माना जाता है। लग्न में राहु है तो सूर्य ग्रहण और पितृ दोष, चंद्र के साथ केतु और सूर्य के साथ राहु होने पर भी पितृ दोष होता है। पंचम में राहु होने पर भी कुछ ज्योतिष पितृ दोष मानते हैं। जन्मपत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है।
गुरु चांडाल दोष
कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु बैठा है तो इसे गुरु चांडाल योग कहते हैं।
विष दोष
चंद्र और शनि किसी भी भाव में इकट्ठा बैठे हो तो विष योग बनता है।
केन्द्राधिपति दोष
केन्द्राधिपति दोष में केंद्र भाव पहला, चौथा, सातवां, और दसवां भाव होता है। मिथुन और कन्या लग्न की कुंडली में यदि बृहस्पति पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में हो, धनु और मीन लग्न की कुंडली में बुध पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में हो तो केन्द्राधिपति दोष का निर्माण होता है। दरअसल, बृहस्पति, बुध, शुक्र, और चंद्रमा के कारण यह दोष बनता है।
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