Mahamrityunjaya Mantra: प्रयल के कर्ता भगवान शिव को कहा गया है देवों के देव महादेव से अभय प्राप्ति संभव है। आदिकाल से ही वेदों पुराणों शास्त्रों संहिता में मनुष्य को धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ की प्राप्ति के लिए सतत प्रयास के माध्यम बतलाए गए हैं।
जीवन यात्रा में चार पुरुषार्थ की प्राप्ति के समय होने वाले विघ्न और अनिष्ट के समन के लिए व प्राण शिक्त को जागृत करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र को विशेष महत्त्व है। अच्छे परिस्थितियों में उबार लेता यह मंत्र जीवन की रक्षा करता है यह मंत्र अनिष्टनिवारण के लिए महामृत्युंजय मंत्र का करें जप।
विशेष महत्त्व क्यों?
असाध्यरोगों से मुक्ति एवं अकालमृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय जप करने का विशेष उल्लेख मिलता है। महामृत्युंजय भगवान् शिव को प्रसन्न करने का मंत्र है। इसके जप के प्रभाव से व्यक्ति अभय की प्राप्ति करता हैं जीवन रक्षा मंत्र है। मौत के मुंह में गया व्यक्ति के लिए विधिवत अनुष्ठान करने से शिव कृपा से प्रणा वायु का संचार होने लगता है। मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की अद्भुत कृपा से नव जीवन पा लेते हैं।
आचार्य श्री सतीश पांडे जी का कहना है की
जब जीवन में विपत्तियां घेर ले किसी प्रकार का कोई निदान नजर ना आ रहा हो भावी बीमारी, दुर्घटना, अनिष्टग्रहों के दुष्प्रभावों को दूर करने, मृत्यु को टालने, आयुवर्धन के लिए सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र का जप करने का विधान है। महामृत्युंजय मंत्र को 'मृतसंजीवनी' के नाम से भी जाना जाता है।
ऋग्वेद संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ त्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।
ऋग्वेद लघु महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
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Posted By: Manoj Kumar Tiwari
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