Navratri 2023: ग्वालियर, (नईदुनिया प्रतिनिधि) चैत मास की प्रतिपदा से वासंतिक नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। मनवांछित फल पाने के लिये साधक नौ दिन तक आदिशक्ति की आराधना करेंगें। नवरात्रि का पर्व पूर्ण श्रद्धा और भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। आदिशक्ति का एक मां के रूप में सभी भक्तों को स्नेहभरा आशीर्वाद मिलता है। इसके बाद भी अगर मां दुर्गा की पूजा करते समय कुछ नियमों का ध्यान रखा जाये तो मनवांछित फल प्राप्त होता है।पूजा में दिशा का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि पर मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिये
ईशान कोण में करनी चाहिये कलश की स्थापना
उत्तर पूर्व दिशा में करें कलश की स्थापना- सनातन धर्म में कलश को सुख-समृद्धि वैभव व मंगल कामनाओं का प्रतीक माना जाता है। कलश में त्रिदेव के साथ रूद्र, सभी नदियों, सागर कोटि-कोटि देवताओं का वाश होता है।ईशान कोण(उत्तर-पूर्व)जल एवं ईश्वर का स्थान माना गया है और यहां सर्वाधिक सकारात्मक ऊर्जा रहती है। इसलिए पूजा करते समय माता की प्रतिमा या कलश की स्थापना इसी दिशा में करनी चाहिए।
पूजा करते समय साधक का मुंह दक्षिण दिशा में हो
देवी मां का क्षेत्र दक्षिण और दक्षिण पूर्व दिशा माना गया है इसलिए कि पूजा करते समय साधक का मुख दक्षिण या पूर्व में ही रहे। शक्ति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाने वाली पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से हमारी प्रज्ञा जागृत होती है एवं दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से आराधक को शांति अनुभव होती है।
कलश स्थापना की विधि
कलश स्थापना की विधि शुरू करने से पहले सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करके साफ कपड़े पहनें. उसके बाद एक साफ स्थान पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर माता रानी की प्रतिमा स्थापित करें. इस कपड़े पर थोड़े चावल रखें. एक मिट्टी के पात्र में जौ बो दें. इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें. कलश पर स्वास्तिक बनाकर इसपर कलावा बांधें. कलश में साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालकर अशोक के पत्ते रखें. एक नारियल लें और उस पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें. इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखते हुए देवी दुर्गा का आवाहन करें. इसके बाद दीप आदि जलाकर कलश की पूजा करें. नवरात्रि में देवी की पूजा के लिए सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश स्थापित किया जाता है।
Posted By: anil tomar
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