हरिद्वार। तीर्थ नगरी हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन जोर शोर से चल रहा है। यूं तो कुंभ मेला हरिद्वार में 12 साल में एक बार लगता है, लेकिन इस बार राशि गणनाओं के अनुसार 11वें साल में ही आयोजित किया जा रहा है। कुंभ मेले देश के चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है, लेकिन एक कारण ऐसा भी है, जिसके कारण हरिद्वार में आयोजित होने वाला कुंभ मेला बाकी सबसे खास और अलग हो जाता है। दरअसल सिर्फ हरिद्वार कुंभ मेले में ही देवगुरु बृहस्पति कुंभस्थ होते हैं।
इसलिए है हरिद्वार कुंभ का महत्व
दरअसल सभी कुंभ महापर्वों का संबंध देवगुर बृहस्पति और सूर्य के राशि परिवर्तन से जुड़ा हुआ है। जिस कुंभ राशि में कुंभ पर्व मुख्य रूप से जुड़ा है, उस राशि में बृहस्पति केवल हरिद्वार कुंभ मेले के दौरान ही प्रवेश करते हैं। वहीं प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होने वाले कुंभ मेले के दौरान बृहस्पति कुंभस्थ नहीं होते हैं।
ऐसी धार्मिक व पौराणिक मान्यता है कि हरिद्वार में बृहस्पति के कुंभस्थ होने के कारण ही ऐसा माना जाता है कि चारों कुंभ नगरों में पहला कुंभ महापर्व हरिद्वार में आयोजित हुआ था। हरिद्वार में महाकुंभ आयोजित होने के बाद शेष तीन धार्मिक नगरों में कुंभ मेले का आयोजन शुरू हुआ।
कलश की सुरक्षा की जिम्मेदारी बृहस्पति व सूर्य पर थी
पौराणिक धर्मशास्त्रों में एक घटना का भी जिक्र मिलता है। धर्मशास्त्रों के मुताबिक जिस समय चार नगरों में कुंभ कलश छलके, उस समय कलश की सुरक्षा की जिम्मेदारी बृहस्पति और सूर्य पर थी। ये दोनों ग्रह राशियों के लिहाज से चारों कुंभ नगरों में कुंभ के आजोजन होने का कारण बने। बृहस्पति को कुंभ राशि में आने का परम मुहूर्त सौभाग्य केवल हरिद्वार में प्राप्त हुआ। ऐसे में हरिद्वार ही एकमात्र ऐसी कुंभ नगरी है, जहां बृहस्पति के कुंभ और सूर्य के मेष राशि में आने पर कुंभ महापर्व लगता है।
शेष तीन तीर्थनगरियों में कुंभ के दौरान बृहस्पति की स्थिति
वहीं प्रयाग में बृहस्पति के वृष और सूर्य के मकर राशि में आ जाने पर कुंभ पर्व का महायोग आता है। ठीक इसी प्रकार उज्जैन कुंभ मेला तब संपन्न होता है, जब बृहस्पति का सिंह राशि में और सूर्य का मेष राशि में प्रवेश हो जाता है। इसी प्रकार नासिक में भी बृहस्पति के सिंह और सूर्य के भी सिंह राशि में पर कुंभ का मेला आयोजित होता है।
सूर्य जहां 12 महीनों में सभी 12 राशियों की यात्रा पूरी कर लेते हैं, वहीं बृहस्पति को एक राशि से दूसरी में जाने में 12 वर्ष लगते हैं। यही कारण है कि कुंभ मेला एक स्थान पर 12 वर्ष बाद आता है। खगोलीय गणित और राशि प्रवेश पर निर्भर कुंभ मेला केवल हरिद्वार में ही कुम्भस्थ होता है। प्रयाग कुंभ को वृषस्थ, उज्जैन और नासिक कुंभ मेलों को सिंहस्थ कहते हैं।
Posted By: Sandeep Chourey
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